शब्दों की मर्यादा में ,कुछ कहने का साहस करना,
ऐसा लगता है अंजुली में ,लहराता सागर भरना ।
बस्ती-बस्ती,बच्चा-बच्चा,पत्ता-पत्ता सा मन टूटा है ,
मुश्किल है पर ,मुमकिन उम्मीदों को आँगन करना ।
चटक रहा है सख्त धरातल,सदियों से दोहन के बाद,
लौट रहे हैं फिर सत्-पथ पे,शुभ-शुभ परिवर्तन करना ।
सभी दिशाओं में जाना है ,लेकर के विस्तार ,विकल्प ,
रूठे,टूटे , पीछे छूटे है उन सबका संशोधन करना ।
योगिक सा मन,तपस्वी सा बन ,सबल सारथी आया है,
स्वच्छ,समर्पण,तनमन से,उस पथ का निर्देशन करना ।
विश्व चकित हो सोख रहा है,भारत की गरिमा के रंग ,
उठो सजग हो प्राण प्रतिष्ठा,करके मन अर्पण करना ।
शब्दों की मर्यादा में ,कुछ कहने का साहस करना,े
ऐसा लगता है अंजुली में ,लहराता सागर भरना ।