मुश्किल हैं हालात,मगर मैं जिंदा हूँ,
सबके उतरे रंग कि,मैं शर्मिंदा हूँ।
नहीं चाहिए ,ये अपनापन रहने दो ,
गुजर गए तूफ़ान कि,अब मैं अच्छा हूँ।
मैंने अपना और पराया ना जाना ,
बिखर गए जज़्बात,ह्रदय से टूटा हूँ।
महलों में हम नहीं सफ़र में होते हैं ,
भूल गया दिन-रात, हमेशा चलता हूँ।
क्या नापेंगे आप , दिलो की गहराई ,
मन में है इक फांस ,तुम्हें भी चुभता हूँ।
काम आएँगी यार , दलीलें - तहरीरें ,
पैनी - पैनी धार ,जुवां पर रखता हूँ ।
मत करना श्रंगार ,अधूरे सपनो का ,
बन परिणय का हार ,गले में पड़ता हूँ।
कौन चुकाए मोल , हमारे अर्पण का ,