मैं पिघलूँगा जब भी उजाला बनूँगा,
हूँ तिनका सही पर सहारा बनूँगा।
नहीं बुझने दूंगा दिया आँधियों में,
झड़ी रौशनी का शरारा बनूँगा।
अगर लिख ना पाया कलम से मुक़द्दर,
तो तलवार पैनी दोधारा बनूँगा।
अमन-चैन हो महकती हों फिजायें,
लहर गंगा सागर की धारा बनूँगा।
बिखरने ना पाए नशेंमां किसी का,
मैं चौखट तुम्हारी रिसाला बनूँगा।
खिलौना नहीं मैं भी इंसां हूँ यारा,
सही वक़्त का कल इशारा बनूँगा।
अभी मांग में हूँ सही दाम बोलो,
खुदा जाने कब फिर से सौदा बनूँगा।
मेरे बढ़ते क़द से वो घबरा रहें हैं।
मैं सबका हूँ अच्छा ही मौका बनूँगा।
मेरे पाँव का तुमने काँटा निकाला,
ख़ुशी हो या गम हो तुम्हारा बनूँगा।
सदा गर्दिशों के ना मौसम रहेंगे,
तेरे अपनेपन का निबाला बनूँगा।
शिकायत करोगे तो अच्छा लगेगा,
है 'अनुराग'हरगिज ना धोखा बनूँगा।