इच्छा केवल त्याज्य एवं बुरी ही नहीं होती है क्योंकि इच्छा ही तो जीवन की किसी भी उपलब्धि का प्रारंभिक बिंदु है।
इच्छा ही न होती तो कलेक्टर, कलेक्टर कैसे बन जाता..? अगर इच्छा ही न होती तो एक डाक्टर, डाक्टर कैसे बन जाता..? और अगर इच्छा ही न होती तो एक पायलट, पायलट कैसे बन जाता...?
इच्छा के अभाव में जीवन किसी भी श्रेष्ठता को प्राप्त नहीं कर सकता। केवल परिस्थितियों से ही किसी राम और कृष्ण, किसी बुद्ध अथवा तो महावीर का जन्म नहीं हो जाता अपितु उसके मूल में राम और कृष्ण, बुद्ध और महावीर बनने की तीव्र इच्छा भी समाहित होती है।
लेकिन यहाँ पर भी एक सावधानी अवश्य बरतनी चाहिए और वो ये कि इच्छा केवल राम को ही जन्म नहीं देती, कभी-कभी रावण को भी जन्म दे देती है और इच्छा केवल कृष्ण को ही जन्म नहीं देती अपितु कभी-कभी किसी कंस को भी जन्म दे देती है।
इच्छा अवश्य होनी चाहिए और होगी ही। इच्छा को निर्मूल करना इतना भी आसान नहीं लेकिन इच्छा शुभ हो, इच्छा सद् हो और इच्छा श्रेष्ठ हो तो नर से नारायण बनने की यात्रा में कोई विलंब, कोई अवरोध शेष नहीं रह जाता।