जीवन बहुत कुछ उस शीतल कुँए की तरह है जिसके आगे झुक जाना ही कुछ प्राप्त करने की शर्त है। कुँए के सामने आप चाहे जितनी देर खड़े हो जाएँ मगर झुके वगैर वह आपकी सेवा में समर्थ नहीं हो पायेगा, भले ही वह आपको तृप्त करने की पूर्ण क्षमता रखता हो।
जीवन के पास भी आपको देने को बहुत कुछ है मगर वहाँ भी शर्त यही है बिना झुके श्रेष्ठ को पाना संभव नहीं है। झुककर चलना जीवन पथ में लक्ष्य प्राप्ति की अनिवार्यता है।
यहाँ अकड़कर चलने वाले रावण के दस सिर भी कट गए और झुककर रहने वाले विभीषण को अनायास ही लंका का राज्य प्राप्त हो गया। सहज जीवन जीने वाले को बहुत कुछ सहज में ही प्राप्त हो जाता है।