*जीवन सार*
जब *भगवान* ने मछली का निर्माण करना चाहा, तो उसके जीवन के लिये उनको समुद्र से वार्ता करनी पड़ी।
जब *भगवान* ने पेड़ों का निर्माण करना चाहा, तो उन्होंने पृथ्वी से बात की।
लेकिन जब *भगवान* ने मनुष्य को बनाना चाहा, तो उन्होंने *खुद* से ही विचार विमर्श किया।
तब भगवान ने कहा: "मुझे अपने आकार और समानता वाला मनुष्य का निर्माण करना है और उन्होंने अपने समान मनुष्य को बनया।"
अब यह बात ध्यान देने योग्य है:
यदि आप एक *मछली* को पानी से बाहर निकालते हैं तो वह *मर* जाएगी; और जब आप जमीन से एक *पेड़* उखाड़ते हैं, तो वह भी *मर* जाएगा।
इसी तरह, जब मनुष्य *भगवान* से अलग हो जाता है, तो वह भी *'मर'* जाता है।
*भगवान* हमारा एकमात्र *सहारा* है। हम उनकी *सेवा और शरणागति* के लिए बनाए गए हैं। हमें हमेशा उनके साथ *जुड़े* रहना चाहिए क्योंकि केवल उनकी *कृपा* के कारण ही हम *'जीवित'* रह सकते हैं।
अतः भगवान से जुड़े रहें।
हम देख सकते हैं कि *मछली* के बिना पानी फिर भी पानी है लेकिन पानी के बिना *मछली* कुछ भी नहीं है।
*पेड़* के बिना प्रथ्वी फिर भी प्रथ्वी ही है, लेकिन प्रथ्वी के बगैर *पेड़* कुछ भी नहीं ...
इसी तरह, *मनुष्य* के बिना भगवान, भगवान ही है लेकिन बिना *भगवान* के *मनुष्य* कुछ भी नहीं !
इस युग में भगवान से जुड़ने का एक सरल उपाय शास्त्रों में वर्णन है; *हरिनाम सुमिरन ...*