तुम परमात्मा को अपना मित्र बनाओ हर घड़ी अपने को उसकी गोदी में बैठा हुआ अनुभव करो । यह मत सोचो कि वह अदृश्य है, शरीर धारी नहीं है, इसलिए उससे मैत्री किस प्रकार की जा सकती है ? जितना ही तुम उसे अपने निकट मानोगे, उतने ही निकट वह आता जाएगा । जिस प्रकार अपने सच्चे मित्र के आगे अपनी समस्या रख देते हो और उससे सलाह माँगते हो, उसी प्रकार उसके सामने अपना हृदय खोल कर रख दो, अपनी उलझनें उसके सम्मुख विस्तार पूर्वक उपस्थित करो और पूछो कि अब क्या करना चाहिए ?
जैसे-जैसे अपनी मित्रता बढ़ाते जाओगे, अपने को उसके ऊपर छोड़ते जाओगे, वैसे ही वैसे वह तुम्हें अपने गाढ़े आलिंगन में लेता जाएगा । *ऐसी स्थिति में सारे "दु:ख-दर्द" "सुख-शांति" में परिणत होते जाते हैं ।
तुम्हें उसके स्वर्गीय संदेश अपने अंदर से आते हुए सुनाई देंगे । ऐसे प्रसंग जिन्हें देखकर साधारण आदमी घबरा जाता है और पीड़ा एवं व्याकुलता से छटपटाता है, परमात्मा पर विश्वास रखने वाला अचल रहता है ।
उसे ऐसा मालूम होता है मानो मैं तो किसी के हाथ का खिलौना मात्र हूँ । अंतरात्मा के आदेशों का वह निर्भयतापूर्वक पालन करता है और जो कुछ भी प्रिय-अप्रिय परिणाम मिलता है, उसे प्रभु का प्रसाद समझकर सहर्ष शिरोधार्य करता है ।
तुम उस परमात्मा को अपनाओ, उसे ही अपना सखा- चौबीस घंटे का साथी बनाओ; अपने हृदय मंदिर में उसकी मुस्कुराती हुई छाया देखो । हर घड़ी अपने को उसी की गोद में सुरक्षित बैठा हुआ देखो। एक शरीर धारी व्यक्ति की तरह उससे बातचीत करो उस संपूर्ण शरीर को शिथिल करके *अपनी अंतरात्मा में से आती हुई दैवी वाणी को सुनो, वह तुम्हें हर मामले में-- "चूल्हा फूँकने" से लेकर "योगाभ्यास" तक के कार्यों में सच्ची सलाह देगा और पथ प्रदर्शन करेगा । उसकी इच्छा को अपनी इच्छा बना दो । अपने चौबीस घंटे के साथी पर अपना बोझ डालकर निश्चिंत हो जाओ, तुम पार हो जाओगे और वह तुम्हें पार कर देगा ।