नताशा - एक साल बहुत लंबा अंतराल नहीं है। कुछ समय जब आप मुझसे नहीं मिलेंगे तो आप मुझे भूल जाएंगे।
अफ़ज़ल - ये इस एक साल की बात नहीं हैं। जब तुम बारहवीं में थी और मेरी दुकान में पहली बार ब्रेड लेने आई थी। मैं उस दिन से तुम्हें प्यार करता हूं। फिर तुम गायब हो गई। पर मेरा प्यार कम नहीं हुआ।
नताशा का घर आ जाता है। उस समय बहुत कम लोगों के पास मोबाइल होता था। अफ़ज़ल एक कागज़ पर अपना मोबाइल नंबर लिख कर नताशा को देता है। और कहता है जब भी तुम्हें लगे मुझसे बात करनी है। मुझे फोन कर लेना। नताशा कागज़ के टुकड़े को अपनी मुट्ठी में बंद कर लेती है और घर के अंदर चली जाती है।
इम्तिहान खत्म हुए कुछ ही दिन हुए थे। रुबीना नताशा के घर अपने निकाह का कार्ड लेकर आती है। वो बताती है कि ईमरान से उसका निकाह पक्का हो गया है। अगले हफ्ते निकाह है। नताशा की मम्मी से भी उसको एक दिन अपने घर रुकने की इजाज़त ले लेती है।
आज संगीत का दिन है। नताशा दोपहर में ही रुबीना के घर पहुंच गई है। अफ़ज़ल नताशा को देखकर खुश होता है। उस दिन के बाद से अफ़ज़ल को यकीन नहीं था कि नताशा आएगी। नताशा अफ़ज़ल से बात नही करती है। अफ़ज़ल को ऐसा लगता है कि नताशा उसे नज़रअंदाज कर रही है। वो थोड़ा उदास है।
शाम को संगीत शुरू होने वाला है। सब खाला, आपा, फूफी ढोल लेकर बैठ जाती है। नताशा भी तैयार हो कर आ जाती है। अफ़ज़ल महमानों के चाय पानी की व्यवस्था कर रहा है। नताशा अफ़ज़ल के पास जाती है और एक थाली में पानी के ग्लास रखने लगती है। अफ़ज़ल उसकी तरफ देखता है। तो नताशा मुस्कुराती है। नताशा अपने खुले बालों को कान के पीछे करती है। उसने वही झुमके पहने है जो अफ़ज़ल उसके लिए मेले से लाया था। अफ़ज़ल थोड़ा खुश हो जाता है।
अफ़ज़ल - मुझे यकीन नहीं था कि तुम आओगी
नताशा - कैसे नही आती। रुबीना की शादी है
अफ़ज़ल - पर उस दिन मुझे लगा कि अब तुम दुबारा मुझसे बात नही करोगी।
नताशा - जब उस दिन आप बस में मेरे पास आकर खड़े हो गए थे। और उन लड़कों को घूरा था। तो आप मुझे बहुत अच्छे लगे थे। पर मैं जानती थी कि हमारा धर्म अलग है। और आप मेरे दायरे से बाहर है। इसलिए खुद को आपकी तरफ बड़ने से रोक लिया।
अफ़ज़ल - प्रेम में कोई दायरा नहीं होता। वो तो हमीं ने खुद से दायरे बना रखे है। समाज को धर्मों के नाम पर बांट दिया है।
नताशा - जब मेरे पापा का तबादला दूसरे शहर हो गया। तो मुझे लगा कि भगवान यही चाहता है कि हम अलग रहे। पर उस दिन उसने खुद मुझे आपके दरवाज़े पर लाकर खड़ा कर दिया।
तभी अफ़ज़ल की फूफी आती है। क्या हो रहा है। नताशा थाली उठाकर जाने लगती है और महमानो को देने लगती है। फूफी कहती है कि आओ तुम्हें एक लड़की से मिलवाऊ। अफ़ज़ल मिलने से मना करता है। पर फूफी जबरदस्ती उसे पकड़ कर ले जाती है। अफ़ज़ल की निगाह तो अब भी बस नताशा पर ही टिक्की थी।