अफ़ज़ल अभी भी कभी कभी नताशा को देखने उसके कॉलेज के बाहर आता था। जैसे ही वो गेट से बाहर निकलती थी उसे देखकर वापिस मुड़ जाता था। हमेशा की तरह हेलमेट पहन कर ताकि नताशा को उसके आने का पता न चल पाए। पर वो ये नहीं जानता था कि नताशा उसकी बाइक को पहचानती है। और हर बार उसे अफ़ज़ल के आने का पता चल जाता था।
उसे देखकर नताशा को बहुत अच्छा लगता था पर अंदर से वो निराश हो जाती थी। अफ़ज़ल अपना वादा निभा रहा था उससे दूरी बना कर रखता था। और नताशा असहाय महसूस करती थी।
एक दिन नताशा की ममेरी बहन कुछ दिन के लिए उनके घर आती है। और नताशा को उसे वहा की सब अच्छी जगह घुमाने के लिए कहती है। नताशा कॉलेज से दो दिन की छूटी ले लेती है और उसे शहर घुमाती है। एक जगह जाने के रास्ते में अफ़ज़ल की बेकरी आती है। उसकी बहन बेकरी के अंदर जाने के लिए कहती है। कि मैने सुना है ये यहां की बहुत नामी बेकरी है। यहां कुछ खाते है। नताशा अंदर जाने से मना करती है। उसकी बहन जिद्द करने लगती और जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ कर अंदर ले जाती है।
अफ़ज़ल शीशे से सब देख रहा होता है। नताशा ने काले रंग का सूट पहना था। नेट का काला दुप्पटा। बालो में चोटी गुंथी हुई थी। सामने के बालो की एक लट बार बार उसके चेहरे पर आ रही थी। जिसे वो बार बार अपने हाथो से हटा रही थी। वो बहुत प्यारी लग रही थी। पर अफ़ज़ल उसके चेहरे की उदासी को पढ़ पा रहा था।
उनके अंदर आते ही अफ़ज़ल हमेशा की तरह पूछता है- क्या चाहिए।
नताशा चुप रहती है। उसकी बहन कहती है कि जो भी यहां की सबसे अच्छी डिश है वो ले आओ। अफ़ज़ल कहता है की किसी को यहां का चीजकेक बहुत पसंद है और वो मंगवा देता है। उसकी बहन बेकरी में दूसरे सामान देखने लगती है। नताशा पैसे अफ़ज़ल की तरफ बढ़ाती है। अफ़ज़ल गर्दन हिलाते हुए ना का इशारा कर पैसे देने से मना करता है। नताशा पैसे पर्स में रख लेती है।
फिर दोनो चीजकेक खाते है। नताशा केक का एक टुकड़ा प्लेट में छोड़ देती है। और जाते समय प्लेट को काउंटर पर अफ़ज़ल के आगे रख देती है। अफ़ज़ल केक का वो टुकड़ा उठा कर खा लेता है। नताशा पीछे मुड़कर देखती है और अफज़ल को एक प्यारी सी मुस्कान देती है। अफ़ज़ल भी मुस्कुरा देता है। उसकी इस मुस्कान ने अफ़ज़ल के बहुत दिनो से बैचैन दिल को ठंडक पहुंचाई थी