फिर रुबीना जाने की इजाज़त मांगती है। तो आदिल कहता है कि हमे चाय नहीं पिलाओगी। तो रुबीना कहती है कि अरे मैं तो भूल ही गई। अभी बनाकर लाती हूं। तो आदिल कहता है तुम्हारे नहीं, तुम्हारी सहेली के हाथ की चाय पीनी है। सुना है वो बहुत बढ़िया चाय बनाती है। नताशा अफ़ज़ल की और देखती है तो अफ़ज़ल इशारे से प्लीज़ कहकर चाय बनाने की प्रार्थना करता है। नताशा बिना कुछ कहे रसोई में चली जाती है।
रुबीना भी उसके पीछे चली जाती है। रुबीना अब तक ये तो समझ गई थी कि अफ़ज़ल के दिल में नताशा को लेकर जज्बात है। वरना वो आदिल से कभी नताशा की बात नहीं करता।
नताशा चाय बनने के लिए गैस पर रख देती है। और अलमारी से नमकीन, बिस्किट निकालने लगती है। तभी आदिल की आवाज आती है। रुबीना चाय के साथ कुछ पकोड़े भी मिल जाए अगर तुम्हारी सहेली के हाथ के तो मज़ा ही आ जाएगा। अफ़ज़ल कहता है ये क्या कर रहा है। तो आदिल कहता है। उसके दिल की बात जानना चाह रहा हूं। अगर बिना कुछ कहे पकोड़े बना दिए तो जरूर उसके दिल में तुम्हारे लिए कुछ है। तो अफ़ज़ल हंसने लगता है। ये कौन सा तरीका है दिल की बात जानने का। सीधा कह दो तुम्हारा पकोड़े खाने का मन है। तो आदिल कहता है। अरे तुम देखते जाओ।
नताशा नमकीन, बिस्किट फिर से अलमारी में रख देती है। और आलू, प्याज उठा कर काटने लगती है। तो रुबीना कहती है कि मुझसे ज्यादा तो ये रसोई तुम्हारी हो गई है। तुम्हे यहां के सब सामान का पता है। कौन सी चीज़ कहां रखी है। लगता है तुम्हारा यहीं रहने का इरादा है। नताशा कहती है चुप कर तुझे तो बस बहाना चाहिए मज़ाक उड़ाने का। सब सामने ही तो रखा है दिख जाता है। तो रुबीना कहती है कि मज़ाक नहीं कर रही। करु अम्मी से बात। अभी जाकर उन्हें सब बताती हूं। आज ही तुम्हारे घर आकर निकाह पढ़ेंगे।
तभी रुबीना की अम्मी आ जाती है और कहती की आदिल को कुछ खिलाया भी या ऐसे ही बिठाए रखा है। तो रुबीना कहती है कि नताशा आदिल भाई जान के लिए चाय, पकोड़े बना रही है। तो अम्मी कहती है कि अरे इस प्यारी बच्ची को क्यू काम पे लगा दिया। तुम्हे बनाना चाहिए था। नताशा कहती है कि आंटी कोई बात नहीं मैं बना दूंगी। तो रुबीना कहती है कि आदिल भाई जान की फरमाइश थी कि वो नताशा के हाथ के चाय, पकोड़े खाना चाहते है।
तो अम्मी आदिल से कहती है। अरे बच्ची से क्यों कहा। मुझसे कह दिया होता। आदिल कहता है कि क्या करता। अफ़ज़ल ने इतनी तारीफ की नताशा की चाय की तो सोचा पी के खुद पता लगाए। अम्मी कहती है कि अफ़ज़ल ने कब नताशा के हाथ की चाय पी। तभी नताशा चाय पकोड़े लेकर आ जाती है। तो आदिल कहता है अरे अम्मी जान छोड़िए। खुद चाय पीकर बताइए की अफ़ज़ल सही कह रहा था की नहीं। अम्मी चाय का एक घूंट पीकर कहती है कि चाय वाकई में बहुत बड़ियां बनी है।