रुबीना की और भी सहेलियां संगीत में आती है। खूब मौज मस्ती और हंसी ठिठोला हो रहा है। नाच गाना शुरू होता है। रुबीना अफ़ज़ल को भी नताशा के पास खींच कर ले आती है। दोनो साथ में नाच रहे है। रिश्तेदारों से भरा होने की वजह से अफ़ज़ल को नताशा से बात करने का मौका ही नही मिलता।
आज रुबीना का निकाह है। नताशा ने पीले रंग की साड़ी पहनी है। वो बहुत ही प्यारी लग रही है। अफ़ज़ल सोच रहा है काश ये नताशा और उसका निकाह होता। निकाह अच्छे से पूरा हो जाता है। रुबीना की विदाई हो जाती है। अब नताशा को भी विदाई लेने का समय आ जाता है। रुबीना की अम्मी अफ़ज़ल से कहती कि वो नताशा को घर छोड़ आए।
नताशा कहती हैं कि उसके पापा उसे लेने आने वाले है। उसने उन्हें फोन करके बुला लिया है। अफ़ज़ल कहता है फिर कभी मिलोगी क्या। नताशा कहती है शायद अगर किस्मत में लिखा हुआ तो। फिर नताशा अपने घर चली जाती है। दोनो के पास बस एक दूसरे की यहीं मीठी यादें है।
घर पर नताशा की शादी की बात चल रही है। नताशा खुश नहीं है। वो बहुत हिम्मत करके अफ़ज़ल को फोन मिलाती है। अफ़ज़ल अपने मोबाइल पर कोई अंजान नंबर देख कर पूछता है - कौन
नताशा धीरे से कहती है - मैं नताशा
अफ़ज़ल एक ठंडी आह भरता है। और पूछता है - कैसी हो।
नताशा कहती है। क्या आज आप मेरे घर आ सकते है। हमारी शादी की बात करने। घर पर मेरे लिए रिश्ते देखे जा रहे है। मैं चाहती हूं कि मैं अपने प्यार को एक मौका दू। अगर सब मान गए तो अच्छा है। नही तो मैं इसे अपनी किस्मत समझ कर समझौता कर लूंगी। जीवन भर इस बात का मलाल नहीं रहेगा कि मैने एक कोशिश भी नही की।
अफ़ज़ल नताशा को वादा करता है कि वो शाम को जरूर आएगा। और अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेगा उसके घरवालों को मनाने की।
अफ़ज़ल शाम को नताशा के घर आता है। उसके मम्मी पापा के पैर छूता है। वो रुबीना का भाई होने के नाते उसे प्यार से बैठने को कहते है और चाय, पानी के लिए पूछते है। पर वो मना कर देता है। और अपने आने का कारण बताता है।