आज अफ़ज़ल ऑफिस से जल्दी घर आ गया था। उसे पता चला था कि आज नताशा घर आने वाली है। नताशा पहले ही घर आ चुकी थी। वो दोनो घर पर अकेली थी। अफ़ज़ल को जल्दी घर आया देख रुबीना पूछती है। क्या बात है भाई जान आप जल्दी घर आ गए। अफ़ज़ल कहता है कि उसकी तबियत कुछ ठीक नहीं है। और उसे चाय बनाने के लिए कहता है। और सोफे पर जाकर बैठ जाता है।
तभी फोन की घंटी बजती है। उस समय ज्यादातर घरों में लैंडलाइन हुआ करते थे। रुबीना फोन उठाने जाती है। तो नताशा कहती है कि चाय वो बना देती है। नताशा चाय लाकर सोफे के पास वाले मेज पर रख देती है। रुबीना अभी भी फोन पर बात कर रही है। अफ़ज़ल कुछ पैसे निकाल के नताशा की तरफ बढ़ाता है। नताशा पूछती है ये किस लिए। अफ़ज़ल गुस्से में उसकी तरफ देखते हुए कहता है। जब मैंने कहा था उस दिन केक तुम्हारे लिए फ्री है तो तुम पैसे रखकर क्यू गई। नताशा कहती है लेकिन। तो अफ़ज़ल गुस्से में उसे घूरते हुए कुछ कहने लगता है।
वो भी कुछ कहना चाहती है। तभी रुबीना आ जाती है। दोनो चुप हो जाते है। नताशा चुप चाप पैसे रख लेती है। अफ़ज़ल खुश हो जाता है। और चाय का एक घूंट पीकर कहता है कि चाय अच्छी बनी है। तुम्हारा एक चीजकेक मुझपर उधार रहा। नताशा मुस्कुरा देती है। अफ़ज़ल का दिल गदगद हो जाता है।
नताशा घर निकलने लगती है। अफ़ज़ल भी दुकान जाने के लिए तैयार हो जाता है और नताशा से पूछता है कि तुम्हे कहीं छोड़ दू। नताशा मना करती है और कहती है कि वो अपनी स्कूटी से आई है। रुबीना फिर चुटकी लेती है। भाई जान आपकी तबियत तो खराब थी। तो अफ़ज़ल मुस्कुरा कर कहता है कि अब ठीक है।
रुबीना कहती है, लगता है चाय का असर हो गया है। हमारी चाय से तो आप कभी इतने तंदरुस्त नहीं हुए। अफ़ज़ल कहता है कि तुम अच्छी चाय बनाती ही कहां हो। रुबीना फिर चुटकी लेती है। ओहो अब तो हमारा बनाया भी आपको नहीं भाता। तो नताशा को हमेशा के लिए यहीं रख ले। चाय भी बनाएगी और खाना भी खिलाएगी, वो भी अपने हाथ से। अफ़ज़ल हंसने लगता है और कहता है। तुम बहुत ज्यादा बोलने लग गई हो। तो नताशा रुबीना को गुस्से से देखते हुए कोहनी मारती है। फिर नताशा अपने घर और अफज़ल दुकान चला जाता है।
अफ़ज़ल अब नताशा से बात करने के बहाने ढूंढा करता था। पर नताशा उसे अकेली मिलती ही नही थी। जब भी नताशा घर आती। उसे सामने देख नमस्ते कर आगे बड़ जाती। अफ़ज़ल सोचता कम से कम मैने उसे देख तो लिया।