अफ़ज़ल एक बड़ियां सा केक उसे बताता है। नताशा धीमे से कहती है। ये कितने का है। अफ़ज़ल मुस्कुरा कर कहता है। कोई बात नहीं तुम्हारे लिए ये फ्री है। वो चौंक कर कहती है, जी। अफ़ज़ल उससे पूछता है। क्या तुम हमेशा ही इतना कम बोलती हो। वो कुछ कहने लगती है। तभी रुबीना कहती है। नही भाई जान। ये बहुत बोलती है अगर किसी से इसकी अच्छी जान पहचान हो जाए। बस अंजान लोगो से कम बोलती है। तो अफ़ज़ल कहता है। तुम कुछ देर चुप रहोगी। उसको भी जवाब देने दो। और नताशा की तरफ देखते हुए कहता है। हम अंजान कहां है। हमसे भी जान पहचान कर लो। अफ़ज़ल आज उससे बात करने का ये सुनहरा मौका छोड़ना नहीं चाहता था। पर नताशा चुप रहती है।
फिर रुबीना कहती है कि इसे हमारी दुकान का चीजकेक बहुत पसंद है वो जरूर खिलाइए। अफ़ज़ल दो चीजकेक ऑर्डर करता है। नताशा के खाने के बाद पूछता है। अच्छा लगा। नताशा हां ने सर हिलाती है। और रुबीना कहती है ये मेरी तरफ से ट्रीट थी। नताशा अफ़ज़ल से पूछती है क्या केक कल मिल जाएगा। तो अफ़ज़ल कहता है कि कल शाम को आकर ले जाना।
अफ़ज़ल रात को दुकान से घर पहुंचता है तो रुबीना उसे छेड़ने लगती है।
क्या बात है भाई जान। आज बहुत जान पहचान हो रही थी।
अफ़ज़ल - इसमें गलत क्या है।
रुबीना चुटकी लेती है।
गलत तो कुछ नही है पर आज से पहले आपने कभी मेरी किसी सहेली में रुचि नहीं दिखाई।
अफ़ज़ल - आज से पहले तुमने कब कोई अच्छी सहेली बनाई।
रुबीना - अच्छा तो नताशा में क्या खास बात लगी। अभी अम्मी से बताऊं आपके इरादे।
अफ़ज़ल उसे घूरकर देखता है। रुबीना हंसते हुए वहां से चली जाती है।
नताशा अगले दिन शाम को केक लेने आती है। वो आज अकेली ही आई थी। पर आज दुकान में भीड़ होने की वजह से अफ़ज़ल उससे बात नही कर पाता है। अपने नौकर से केक पैक करने को कहता है और एक चीजकेक देकर नताशा को खाने का इशारा करता है। नताशा चीजकेक खाती है। इतनी देर में केक पैक हो कर आ जाता है। नताशा केक के पैसे पूछती है। तो अफ़ज़ल कहता है कि बताया तो था की तुम्हारे लिए फ्री है। अफ़ज़ल दूसरे कस्टमर से बात करने लगता है। इतनी देर में नताशा पैसे काउंटर पर रख कर चली जाती है।
आज अफ़ज़ल को बुरा लग रहा था कि वो नताशा से बात नही कर पाया। और वो उसके मना करने के बाद भी पैसे रखकर चली गई। कहीं वो उसके बारे में कुछ गलत तो नहीं सोचने लगी थी। अफ़ज़ल को उससे मिलने की चाह होने लगती है। वो उसके मन की बात जानना चाहता था।