बात 2004 की है। अफ़ज़ल की नज़र खिड़की से बाहर जाती है। एक स्कूटी से सफेद सूट पहने एक लड़की उतरती है। उसके मूंह पर दुप्पटा लिपटा है। अफ़ज़ल का दिल जोर से धड़कने लगता है। उसका चेहरा देखना चाहता है। पर वो नज़र से ओझल हो जाती है।
कुछ देर में घंटी बजती है। अफ़ज़ल दरवाज़ा खोलता है। वही लड़की सामने खड़ी है। उसके चेहरे पर अभी भी दुपट्टा लिपटा है।
अफ़ज़ल पूछता है - किससे मिलना है।
वो धीरे से कहती है - जी रुबीना।
उसकी आवाज़ अफ़ज़ल के कान में खनकती है। जैसे वो कबसे इस आवाज़ को सुनना चाहता हो। वो और कुछ पूछता इतने में पीछे से रुबीना की आवाज़ आती है। भाई जान ये मेरी सहेली नताशा है। नताशा अंदर आ जाओ।
नताशा चेहरे से दुपट्टा हटाने लगती है। अफ़ज़ल को तो जैसे बस इसी का इंतजार था। नताशा दुपट्टा हटाती है। अफ़ज़ल उसे देखता रहता है। उसे बहुत सुकून मिलता है। वही मासूम चेहरा जिसकी कबसे उसे तलाश थी। नताशा ऊपर रुबीना के कमरे में चली जाती है।
अफ़ज़ल तीन साल पुरानी यादों में खो जाता है। जब वो एम.ए के प्रथम वर्ष में था। और नताशा बारहवीं कक्षा में। अफ़ज़ल की पुश्तैनी बेकरी की दुकान थी। जिसका वहां काफी नाम था। वो कभीं कभी वहां अपने अब्बू का हाथ बटाने चला जाया करता था।
ऐसे ही एक दिन उसने नताशा को देखा था। वो इसी तरह मूंह में दुपट्टा लपेटे उसकी दुकान में आई थी। उसने हल्के गुलाबी रंग का सूट पहना था। जैसे ही उसने दुपट्टा हटाया, उसका मासूम चेहरा देख के अफ़ज़ल का दिल जोर से धड़क पड़ा था।
बहुत हिम्मत करके उसने पूछा था - क्या चाहिए।
वैसे ही धीमी आवाज़ में नताशा ने कहा था - जी ब्रेड
जाते समय उसका दुपट्टा एक लोहे की पुरानी कुर्सी में फस गया था। जिसे निकालते हुए वो हड़बड़ा गई थी। घबराहट में वो दुपट्टा फाड़ ही देती। तभी अफ़ज़ल ने प्यार से आकर उसे निकाला था। उस दिन के बाद से तो अफ़ज़ल को चैन ही नही था। वो हर वक्त बस उसी के बारे में सोचता रहता। उसके बारे में कुछ नही जानता था। उसके दोस्त उससे पूछते आजकल इतना खोया हुआ क्यू रहता है। कहीं दोस्त मजाक ना बना दे इसलिए किसी से कुछ नही कहता था।।
अफ़ज़ल अब हर रोज दुकान पर बैठने लगा था। शायद कभी वो फिर से उसकी दुकान में आ जाए। और उसे उसकी एक झलक देखने को नसीब हो। इस बार उसने सोचा अगर वो फिर दुकान पर आई तो वो उससे उसका नाम पता जरूर पूछ लेगा। उस दिन के बाद से तो जैसे सूखा ही पड़ गया। वो नज़र ही नही आई। अब अफ़ज़ल का मन दुकान में नहीं लगता था। उसने दुकान आना कम कर दिया।
अफ़ज़ल के अब्बू को आज किसी काम से बाहर जाना था तो अफ़ज़ल को दुकान संभालने को कहा। अफ़ज़ल बिल्कुल नही जाना चाहता था। पर अब्बू को मना नही कर सकता था। कॉलेज से सीधे ही दुकान चला गया। बस बेमन से बैठा था। पर ये क्या आज तो कमाल ही हो गया। वो दुकान में आई। उसने लाल रंग का सूट पहना था। बिल्कुल लाल गुलाब लग रही थी। पर उससे बात कैसे करता। उसके साथ उसकी एक सहेली थी जो बहुत तेज लग रही थी।
दोनों के हाथ में बहरवी कक्षा की अकाउंट्स की किताब थी। शायद दोनो ट्यूशन से सीधे यही आई है। उसकी सहेली सीधे काउंटर पर आकर बोली। हमे एक केक का ऑर्डर देना है। कोई सैंपल तो दिखाइए। अफ़ज़ल ने सैंपल बुक आगे कर दी। इसमें सब है जो पसंद हो वो आर्डर कर दो। उसकी सहेली ही बस बोले जा रही थी। ये अच्छा है, ये अच्छा नहीं है, ये ऐसा है, ये वैसा है। वो सिर्फ हां ना में जवाब दे रही थी। इससे अंदाजा लगाया कि वो शायद कम बोलना पसंद करती है। या फिर उससे शर्मा रही थी। जो भी हो अफ़ज़ल को उसका अंदाज पसंद आया था। और वो अब पूरी तरह दिल में उतर गई थी।