नताशा का एम. कॉम का प्रथम वर्ष पूरा हो जाता है। कुछ समय बाद नताशा के लिए एक रिश्ता आता है। नताशा कॉलेज जाने के लिए तैयार हो रही होती है। तभी उसकी मम्मी आकर कहती है कि आज वो कॉलेज की छुट्टी कर ले। उसे लड़के वाले देखने आ रहे है। नताशा ये सुन कर रुआंसी हो जाती है। बेमन से तैयार हो जाती है। लड़के वालो को नताशा पसंद आ जाती है। नताशा के पापा कहते हैं कि वो शादी उसकी एम.कॉम पूरी होने के बाद ही करेंगे। लड़के वाले इस बात के लिए मान जाते है।
नताशा अब और दुखी रहने लगी थी। वो किसी से कुछ कहती नही थी। पर अंदर ही अंदर घुट रही थी। कभी कभी उसका मंगेतर घर पर फोन करता था तो वो सिर्फ हां ना में ही जवाब देती थी। वो एक बार अफ़ज़ल से मिलना चाहती थी।
नताशा शाम को कुछ बहाना करके अफ़ज़ल की दुकान जाती है। अफ़ज़ल उसे अकेले आया देख कर हैरान रह जाता है। और बिना उसके कहे एक चीजकेक का ऑर्डर देता है। नताशा का मासूम सा चेहरा मुरझाया हुआ है। नताशा चीजकेक खाती है। और एक टुकड़ा छोड़ कर अफ़ज़ल को दे देती है। अफ़ज़ल वो टुकड़ा खा लेता है। नताशा कहती है कि कुछ देर के लिए बाहर चले। मैं कुछ बात करना चाहती हूं।
नताशा और अफ़ज़ल दुकान के सामने वाली सड़क पर चल रहे है। दोनो कुछ देर चुप रहते है। नताशा कुछ कह ही नहीं पा रही होती। फिर अफ़ज़ल पूछता है तुम कुछ कहने वाली थी। तो नताशा हिम्मत करके कहती है। क्या आप मुझे भूल पाएंगे। अफ़ज़ल पूछता है। ये सब क्यों पूछ रही हो। नताशा बताती है कि उसकी शादी तय हो गई है। और एम.कॉम पूरा होते ही उसकी शादी हो जाएगी। ये सुनते ही अफ़ज़ल का दिल टूट सा जाता है।
दोनो फिर कुछ देर खामोश से चलते रहते है। नताशा पूछती है। क्या हमारे पास कोई दूसरा रास्ता है। अफ़ज़ल कहता है। रास्ते तो मैं बहुत सारे निकाल सकता हूं। अगर तुम हां कहो तो। नताशा उसकी तरफ देखकर हल्के से मुस्कुराती है और कहती है। रास्ता तो मुझे ही निकालना है और उस पर मुझे अकेले ही चलना है। फिर अफ़ज़ल से अलविदा लेते हुए कहती है कि मुझे अब घर चलना चाहिए। मैं कुछ बहाना करके निकली थी।
फिर चलते हुए अफ़ज़ल की बाइक के पास रुक जाती है और कहती है कि इसके टायर ठीक करवा लीजिए। चलते हुए फिसल सकते है। मेरे कॉलेज की सड़को पर गड्डे बहुत है। तो अफ़ज़ल हैरानी से उसकी तरफ देखता है और पूछता है। तुम कबसे जानती थी। तो नताशा कहती है कि पहले दिन से ही। बस एक बार अपना हेलमेट निकल कर मुझे भी दिखा दिया कीजिए ताकि मैं भी आपको देख सकू। अफ़ज़ल मुस्कुराता है।
नताशा कहती है कि मेरी बहुत इच्छा थी। कभी आपकी बाइक पर बैठने की। तो अफ़ज़ल कहता है। तुम्हारी हर इच्छा पूरी करने को तैयार हूं। इसपर नताशा कहती है कि अब उन सब का समय निकल गया है। और अपनी स्कूटी पर बैठते हुए कहती है कि अब मुझे चलना चाहिए। शायद अब कभी मिल ना पाऊं। ऐसा कहते हुए दोनों की आंख में आंसू थे। अफ़ज़ल कहता है कि जीवन के किसी मोड़ पर अगर तुम्हें मेरी जरूरत महसूस हो तो बेझिझक मुझे याद करना। तुम मुझे हमेशा अपने सामने पाओगी। तो नताशा कहती है। अब इसकी जरूरत नहीं पड़ेगी। मैने अपना रास्ता चुन लिया है। और वो निकल जाती है।।अफ़ज़ल नताशा को जाते हुए दूर तक देखता है। जब तक वो उसकी आंख से ओझल नहीं हो गई।