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लक्ष्मी शादी होकर अपनी ससुराल में आती है और रसोई में पहला खाना बनाती है तभी मैं रसोई की खिड़की से गली मेंकुछ औरतों को बात करते सुनती है जो उसी के घर के बारे में बात कर रही हैं और उसके मन में कई सवाल उठते हैं।
अब आगे--
सेठ नगीनादास करीब पचास-पचपन की उम्र वाले अच्छे व्यक्तित्व के व्यक्ति थे।छोटे से शहर में उनकी फैक्ट्री थी, समाज में मान-सम्मान था।
पन्द्रह वर्ष पूर्व वे शहर से लगते गांव में रहते थे।भरपूरा परिवार था।घर आर्थिक रूप से समृद्ध था।घर के बड़े बेटे थे, लाड़ले थे तो स्वाभाविक रूप से जवानी में होने वाली बहुत सी कमजोरियों में जकड़ गये।रंगीन मिजाजी के चर्चे जब आम होने लगे तो मां -बाप ने लगाम खींची, पर तब तक देर हो चुकी थी।
बहुत सोच विचार के बाद हल ये ही निकला जोकि आम हिन्दुस्तानी परिवार में चलन है कि शादी ही हर समस्या का समाधान है। लड़की ढूंढ़ी जाने लगी।पच्चीस तक पहुंचते -पहुंचते रूक्मिणी से उनका विवाह हो गया। खूबसूरत राजकुमारी सी रूक्मिणी नगीना को ऐसी भायी कि कमरे से बाहर निकलना तक बन्द हो गया।मां -बाप ने चैन की सांस ली।
नगीना सारे दिन रूक्मिणी के आगे पीछे घूमता और उसके रूप पर लट्टू रहता तो रूक्मिणी इतना प्यार करनेवाला पति पाकर फूली न समाती।
तुम सच में बहुत खूबसूरत हो एकदम अप्सरा... वह बड़े लाढ से कहता।
और किशोरी रूक्मिणी उसकी प्रेमभरी बातों के जबाब में इठलाकर नखरे करती,
चलो हटो.. सारे दिन यूं ही बोलते हो झूठे कहीं के...
और उसकी इस अदा पर नगीना उसे बाहों में भर अपने प्यार की मुहर लगाता।
दो-तीन साल बीतते बीतते छोटा भाई पढ़ने शहर चला गया और बहिन की शादी हो गई।
अब पिता चाहते थे बेटा काम संभाले।कई बार वो उसे कह भी चुके थे।
"अब उम्र हो गई है बेटा,तुम अब गृहस्थी वाले हो गये हो,आगे परिवार बढ़ेगा तो मेरा हाथ बंटाओ।"
अभी गृहस्थी के चक्कर में पडने का मेरा कोई इरादा नहीं और अभी से कामकाज... मेरी अभी खेलने खाने की उम्र है... कहकर नगीना टाल देता।
जब कोई असर होता न दिखा तो फिर बहु का सहारा लिया गया।जिसके साथ सारा दिन रहता है उसी के समझाने से ही समझे शायद।
रूक्मिणी अब किशोरी से वयस्क हो चली थी।सास उसे नित नयी बातें समझाने लगी जिससे वह नगीना को काम करने को राजी कर पाये।अभी तक घर में किलकारी न गूंजी थी अतः समाधान यही सोचा कि अगर नगीना के जीवन में नन्हा-मुन्हा आ जाये तो उसे जिम्मेदारी का एहसास हो जायेगा।
खैर जो -जो उपाय हो सकते थे अपनाये गये और साल होते-होते पता नहीं कौन सा उपाय काम आया कि रूक्मिणी की कोख हरी हो गई।घर में खुशियां छा गई।
कुल मिलाकर परिणाम ये निकला कि नगीना खुशी- खुशी फैक्ट्री जाने लगा।नियत समय पर बालक का जन्म हुआ।धूमधाम से उसका जन्मोत्सव मनाया गया।
गृहस्थी की गाड़ी अपनी रफ़्तार से आगे बढ़ रही थी। एक लड़की और एक लड़के ने परिवार को बढा दिया।भाई शहर में नौकरी पा वहीं का हो गया और माता पिता जल्दी ही बेटे की सुखी गृहस्थी देख एक- एक कर स्वर्गवासी हो गये।
इस सबके परिणामस्वरूप रूक्मिणी घर-गृहस्थी में ऐसी फंसी कि नगीना के लिए समय ही न रहा।
क्रमशः-
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"