आपने अभी तक पढा - -
कि पवन और लक्ष्मी ने रूक्मिणी को हास्पीटल में एडमिट करा दिया। जिन्होंने पहले भाग नहीं पढ़े,वो पहले उन्हें पढ़ ले, तभी कहानी अच्छे से समझ आयेगी।
अब आगे......
लक्ष्मी डाक्टर के कमरे के बाहर बैठी हुई सुबह के बारे में सोच रही थी जबकि डाॅक्टर रूक्मिणी का चैकअप कररहा था।
लक्ष्मी,पवन के साथ रुक्मिणी के कमरे में पहुंची तब उसने देखा कि वह एक छोटा सा कमरा है और चारपाई पर रुक्मिणी लेटी हुई है, कमरा काफी दिनों से रंगा हुआ भी नहीं था। लक्ष्मी पूछने लगी -
आप कैसी हैं मम्मीजी...?
उसकी सास अस्त-व्यस्त पड़ी हुई थी देखने से ही लगता था कि वह बहुत कमजोर हैं। लक्ष्मी ने देखा कि रुक्मिणी देवी की उम्र पैंतालीस पचास के करीब थी। अपने समय में बड़ी सुंदर रही होंगी लेकिन समय के चाबुक ने उनको 10 वर्ष आगे खींच दिया था। वह पुरानी सी चादर लपेटे हुए थीं, तकिया पेट के पास चिपकाया हुआ था, हाथ- पैरों पर झुर्रियां सी थीं। बाल उलझे हुए थे। वास्तव में मीना के जाने के बाद शायद किसी ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया था।
रुक्मिणी ने लक्ष्मी और पवन को देखा तो उठने लगी,पर उठ न सकीं। पवन ने उनको सहारा दिया और लक्ष्मी ने उनके पैर छुए।पवन भी साथ में पैरों में झुक गया ।वह आश्चर्य से पवन और लक्ष्मी की ओर देखने लगी उनकी आंखों में आंसू थे। लक्ष्मी व पवन के सर पर कंपकंपाते हाथ रखते हुए कहा।
मैं ठीक हूं ...।
.उन्होंने कमजोर आवाज में पूछा- तुम .....तुम पवन की बहू हो,... यहां कैसे... आ गई ..?
दोनों चुप थे।
बहुत सुंदर हो... मीना ने बताया था ,तुम्हारे बारे में .... कमजोरी के कारण रुक्मिणी ठीक से बोल भी नहीं पा रही थी ।उसे बोलने के लिए अपना सारा जोर लगाना पड़ रहा था।
लक्ष्मी ने उनके हाथ को अपने हाथ में ले लिया और चारपाई पर उनके पैरों के पास बैठकर उनको दिलासा दिया ।
मम्मीजी आप चिंता ना करें, अब आपकी बहू आ गई है ना। आपको कोई दुख -परेशानी नहीं होने देगी ।
रुक्मणी ने भावुक आवाज में कहा -बहु जवानी तो दुख में बीत गई...., अब बुढ़ापे में सुख.... का क्या करना ...
पवन ने लक्ष्मी को कहा,
चलो, हम मम्मीजी को लेकर हॉस्पिटल चलते हैं। मैं बाहर सबको बताता हूं,तब तक तुम मम्मी के कपड़े वगैरह ठीक कर दो ।
पवन बाहर चला गया ।लक्ष्मी रुक्मिणी से बातें करने लगी।
आप शायद अपने जीवन से निराश हो गई हैं मम्मीजी।
कुछ भी कह लो बहू .....अब इस जीवन में... रखा ही क्या है? पति,बच्चे सब बेगाने हो गये.....अपना तो कोई न रहा।मौत आ जाए बस ...,.अब सहा नहीं जाता...., अकेले पड़े- पड़े मन कलप जाता है ...यह कमरा ही अब.... मेरा ठिकाना है।...कितने बरस हो गये हैं,... यहां से बाहर की दुनिया ही नहीं देखी...।
इतना ज्यादा बोलने पर रुक्मिणी को खांसी आ गई। लक्ष्मी उनकी पीठ व सीने पर हाथ फेरने लगी।लोटे से उनको पानी पिलाया और फिर उनसे खाना खाने का आग्रह करने लगी।खाने के छोटे-छोटे कौर उनके मुंह में रखने लगी । थोड़ा खाने के बाद उन्होंने मना कर दिया और लेटने लगी। लक्ष्मी ने सहारा देकर लिटा दिया।थोड़ी राहत मिलने पर वह फिर बोलने लगी, मानो बरसों से बोलने को न मिला हो और आज ही दिल की सब भड़ास निकाल देंगी।
अकेलापन खाने को दौड़ता है... कुछ भी अच्छा नहीं लगता ।भगवान उठा ले अब बस यही कामना है ।
लक्ष्मी ने उनके हाथ को दबाते हुए कहा ऐसा नहीं कहते मम्मीजी.. ....अच्छे दिन नहीं रहे थे तो बुरे दिन भी नहीं रहेंगे। आपके पुराने दिन फिर लौट आएंगे ।अभी तो मैं आई-आई हूं।मुझे भी अपने पति की जन्मदाता के साथ रहने का अधिकार है ना।
रुक्मणी ने लक्ष्मी से पूछा -
एक बात बता बहू ...
लक्ष्मी बोली -क्या मम्मीजी ?
तूने पवन पर क्या जादू... कर दिया जो वह डॉक्टर को लेने चला गया .....अभी तक तो वह बिना सीमा की आज्ञा के.... एक गोली भी नहीं लाया।
सुबह का भूला शाम को घर आ जाये तो उसे भूला नहीं कहते ना मम्मीजी।
रूक्मिणी चुप रही।
लक्ष्मी कुछ और कहती, तब तक पवन आ गया और फिर दोनों सहारा देकर रुक्मिणी को लेकर हास्पीटल चले।
क्रमशः
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
28/11/2021