पहले के भाग1,2में आपने पढ़ा--
लक्ष्मी शादी होकर नगीना दास के घर आती है और यहां आकर उसे पता लगता है कि उसकी सास कोई और है। ससुराल की क्या कहानी है ,इसे जानने को वो जिज्ञासु होती है।
अब आगे पढिय़े....
रुक्मिणी सुगढ गृहस्थिन बन चुकी थी और घर गृहस्थी में ही व्यस्त थी। बड़ा बेटा पवन स्कूल जाने लगा और उससे छोटी मीना मां पिता दोनों की लाड़ली थी ।उससे दो साल छोटा गगन अभी दो साल का था।
नगीना दास के बदलते रंग- ढंग देख रूक्मिणी ने उसे समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन उसपर कोई असर न हुआ।जिस रूक्मिणी के लिए वो तीन साल तक घर से बाहर भी नहीं निकलता था आज वो उसकी बात पर ध्यान भी नहीं देता था।रात को देर से घर आना,खाना भी बाहर खा लेना यहां तक कि कभी कभी-वो रात को बापिस भी नहीं आता।
सुनो आज जल्दी आना बाजार जाना है.. रूक्मिणी ने नगीना से कहा।
तो मुझे जल्दी आने की क्या आवश्यकता है, तुम अकेले भी तो जा सकती हो...
पर... बच्चों की देखभाल के लिए किसी को घर भी तो होना चाहिए... आप की भी तो घर के प्रति कोई जिम्मेदारी है... रूक्मिणी ने थोड़ा फिक्र मंद होते हुये कहा।
बच्चे बड़े हो रहे हैं...... पर थोड़ा फिक्र मेरी भी कर लेतीं तो मैं भी जल्दी आ सकता था... नगीना ने उसका ध्यान अपनी ओर दिलाते हुये कहा।
तुम्हें मेरी क्या जरूरत अब... बाहर ही जी लगता है मैं दिनरात यहां घर में पिसती हूँ और...
इस तरह शिकवा शिकायतों के बीच धीरे-धीरे रूक्मिणी और नगीना के बीच बात-बात पर तकरार होने लगी और फिर लड़ाई- झगड़े में बदलने लगी।ये नहीं था कि नगीना बच्चों से प्रेम नहीं करता था,उनकी हर जरूरत का ध्यान रखता था लेकिन रूक्मिणी में उसे ज्यादा रूचि न रही।
आज की रुक्मिणी में और नौ साल पहले वाली अल्हड़ रूक्मिणी में बहुत अन्तर आ गया था।इकहरे बदन वाली कोमलांगी,लता सी रूक्मिणी अब दोहरे बदन की हो गई थी।चेहरे की चमक गृहस्थी के जंजाल में फीकी पड़ गई। व्यवहार में भी अब वो पहले भी मधुर भाषिणी न रही।
कहां वो अपना सारा स्नेह व समय नगीना पर लुटाती और हर संभव उसकी खुशी का ध्यान रखती लेकिन पिछले चार-पांच वर्षों में नगीना उसकी गिनती में पीछे होता चला गया।कारण भी था एक- एक कर तीन साल में तीन बच्चे और फिर सास का असमय जाना।छोटी उम्र में ही गृहस्थी का पूरा भार उस पर आ पड़ा था।
जब रुक्मिणी को लगा कि नगीना उससे ज्यादा दूर जारहा है तो उसने उससे अपनी व्यस्तता और बच्चों की जरूरतों के बारे में बताकर अपनी ओर खींचने की कोशिश की पर अब जब भी वो पति को कुछ कहती नगीना अनसुनी कर देता।वह कहता तुझे कमी क्या है ,तेरी सारी जरूरतें पूरी कर रहा हूं तो वो उखड़ जाती। सुविधाएं ही सब कुछ नहीं,मुझे घर-गृहस्थी संभालने में तुम्हारा साथ भी चाहिए। लेकिन नगीना का दिल न पिघला ।
सच तो यह था वो अब रूक्मिणी से ऊब गया था और उससे कम से कम बात करता ।दो-तीन वर्ष इसी तरह कलह में बीत गये।
पति के प्रेम बिना स्त्री की क्या दशा होती है वो कोई विरहन ही समझे।वही स्थिति रूक्मिणी की हो गई।अपनी इच्छाओं को मारती,पति के साथ को तरसती वह,मन ही मन कुढ़ने लगी, बात बात पर लड़ने को तैयार रहती। चिढ़- चिढा़ स्वभाव उसका स्थाई भाव हो गया।इन सब बातों का बच्चों पर भी असर होने लगा। माता-पिता की रोज-रोज की कलह बच्चों को भयभीत कर देती।पति पर जो असंतोष और क्रोध था उसके शिकार कभी-कभी निर्दोष बच्चे हो जाते और वे सहमे से रहने लगे।इन सबसे छुटकारा पाने के लिए अब नगीना शहर की फैक्ट्री में ही ज्यादा रूकने लगा।
क्रमशः
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
20/11/2021