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"लक्ष्मी "

7 नवम्बर 2021

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        लक्ष्मी रसोई में बैठी खाने की तैयारियों में जुटी हुई थी।आज ससुराल में उसकी पहली रसोई थी।कल शाम ही वह मायके से विदा हो कर ससुराल आई थी और रात ही उसकी सास ने सुबह रसोई वही बनायेगी,यह बता दिया था।रात को ही उसने पति पवन से परिवार वालों की पसंद नापसंद के बारे में पता कर लिया था।
  लक्ष्मी वह सिर्फ नाम से ही नहीं स्वभाव से भी थी।जैसी सुन्दर वैसी ही गुणवान।दया और करुणा से उसका हृदय पूरित था। भारतीय संस्कार की मानो मूरत थी।मायके में वो सभी की प्यारी थी।ससुराल में भी वो सिर्फ पांच दिन ही लगाकर गई थी और इतने कम दिनों में ही उसने सबके दिल में घर कर लिया था। मायके तो वह महीने के लिए गई थी पर जब पांचवें दिन ही पति लेने पहुंच गए तो वहां सबको हैरानी हुई।
      घर में सभी याद कर रहे हैं और मां ने लिवा लाने के लिए भेजा है,कहते हुते पवन थोड़ा सा सकुचा गया था। लक्ष्मी के भाई -बहन स्वभाव से सीधे-साधे जीजा की हंसी बनाने लगे और मां बाप मुस्करा दिये।
   लक्ष्मी ने सुबह -सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर रसोईघर में पदार्पण किया और अपने काम में जुट गई। सबसे पहले उसने मीठे से शुरूआत की।बेसन का हलवा,जो उसकी सास हर खुशी के अवसर पर बनाती थी और सभी को पसंद था।
रसोई घर में एक खिड़की थी जो गली की तरफ खुलती थी। खिड़की से ठंडी ठंडी हवा अन्दर आरही थी जिससे उसको गर्मी का अहसास कुछ कम हो गया।बाद वह सब्जियां बगैरह काटने लगी। उसकी ननद जब मदद के लिए आई तो उसने उससे रसोई की आवश्यक सामग्रियों के बारे में पूछकर ,आग्रह कर वापिस भेज दिया था। 

तभी उसे गली में कुछ औरतों के बात करने की आवाज आने लगी। कुछ देर बाद आवाजें नजदीक आई और लक्ष्मी को ऐसा महशूस हुआ कि वे शायद उसके ससुराल के बारे में ही चर्चा कर रही हैं और खिड़की के पास ही खड़ी हो गई हैं।

उसने थोड़ा उठकर आंचल को खींच कर निगाह मारी।वे दो औरतें थीं जिनमें एक उसकी सास की उम्र की लगभग चालीस पैंतालीस की अधेड़ औरत दूसरी वृद्ध लगभग साठ वर्ष की रही होगी। उसके कानों ने अपनी मंजिल पर कदम रख दिए।
अधेड़ावस्था वाली कह रही थी-अरे आजकल भलाई का जमाना कहां है?बनैनी (छोटे शहर व गांव-देहात में बनैनी शब्द बनियास्त्री को कहते हैं) यहां ही देख लो।पवन की शादी में उसकी मां को ही नहीं शामिल किया और हर जगह बनैनी ही मालिक बनी घूम रही थी।बहू भी ऐसी आई जो अपनी सास से मिली भी न, दस-बारह दिन हो गये शादी को। सास बिचारी तो नौहरे(पशु बांधने का स्थान)के एक कमरे में बन्द पड़ी है।

लक्ष्मी को कुछ समझ नहीं आया कि बनैनी कौन और उसकी सास कौन?वो और भी ध्यान से सुनने लगी।
   अब वृद्ध औरत बोल रही थी-बनैनी के तो भाग ही खुल गये।ऐसी सुन्दर-सुघढ़ बहू है पवन की और दहेज तो पूछो मत,घर भर गया बनैनी का।साक्षात लक्ष्मी है।
अरे उसका तो नाम भी लक्ष्मी है। अधेड़ औरत बोली।   अभी  दूसरी बार आई है और सुबह-सुबह रसोई में लग गई। दोनों की निगाहें अब रसोई की तरफ थीं। 

पर सास को क्या सुख दिया? वृद्ध थोड़ा सहानूभूति पूर्ण स्वर में बोली।
   अरे चाची!कैसी बातें करती हो?उसे तो बताया ही न होगा कि उसकी सगी सास तो कोई और है और बच्चे भी तो बनैनी के कहे में रहते हैं,मजाल है कोई उसकी बात टाल जायें-सगे हों या सौतेले।
तभी लक्ष्मी का ध्यान टूटा कढाई में तेल धूंआ छोड़ रहा था और उसका मन भी उन औरतों की बातों की धुंध से भर गया जो उसके लिए एक पहेली बनकर रह गई थीं।
औरतें तो बातें करते हुये चली गईं लेकिन लक्ष्मी की जिज्ञासा को बढा गई। उसने मन में बहुत से प्रश्न थे जिनके उत्तर उसे ढूंढने थे।
उसकी सास कौन है?
बनैनी कौन है?
उसके मायके वालों को भी ये जानकारी थी या नहीं ।उसे कुछ क्यों नहीं बताया गया?
इन प्रश्नों के भंवर में डूबती-उतरती लक्ष्मी ने खाना तैयार किया।
क्रमशः

प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"

  07/11/2021 


Jyoti

Jyoti

👍👍👍

21 दिसम्बर 2021

Anita Singh

Anita Singh

बढ़िया👌

21 दिसम्बर 2021

रेखा रानी शर्मा

रेखा रानी शर्मा

रहस्य तो सच में ही हैं 😊

8 दिसम्बर 2021

Subhash Sharma

Subhash Sharma

बहुत सुन्दर कहानी 💐🙏🙏🙏

20 नवम्बर 2021

Purnima

Purnima

बहुत सुन्दर रचना 💐🙏🙏🙏

7 नवम्बर 2021

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रचनाएँ
"ससुराल रूपी पिंजरा "
4.8
मेरी यह पुस्तक नारी जीवन के कुछ पहलुओं पर प्रकाश डालती है। पुस्तक में दो कहानियां हैं। "ससुराल रूपी पिंजरा "जिसमें शादी के बाद आनेवाली बहुत सी समस्याओं में से एक कहानी का विषय है। लड़कियों के जीवन में विवाह के बाद आये बदलाव और सामंजस्य बिठाने को लेकर लिखी गयी यह कहानी भारतीय मूल्यों को बरकरार रखते हुए लिखी गयी है, जहां लडकियों का संयम और समझदारी ही राह दिखाते हैं और समस्याओं से पार होना सिखाते हैं।आशावादी रवैया और धैर्य समस्याओं का हल निकालता है। दूसरी कहानी "लक्ष्मी" पहली कहानी के उल्ट बहू द्वारा सास को उसके घर में पुनर्स्थान की है वो भी शान्ति और सौहार्दपूर्ण तरीके से। आशा है पुस्तक की दोनों कहानियाँ पाठकों को पसंद आयेंगी। पुस्तक निःशुल्क रखी गयी थी ताकि ज्यादा से ज्यादा साथी पढ सकें पर कुछ ज्यादा समीक्षायें नहीं दिखीं।
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