लक्ष्मी रसोई में बैठी खाने की तैयारियों में जुटी हुई थी।आज ससुराल में उसकी पहली रसोई थी।कल शाम ही वह मायके से विदा हो कर ससुराल आई थी और रात ही उसकी सास ने सुबह रसोई वही बनायेगी,यह बता दिया था।रात को ही उसने पति पवन से परिवार वालों की पसंद नापसंद के बारे में पता कर लिया था।
लक्ष्मी वह सिर्फ नाम से ही नहीं स्वभाव से भी थी।जैसी सुन्दर वैसी ही गुणवान।दया और करुणा से उसका हृदय पूरित था। भारतीय संस्कार की मानो मूरत थी।मायके में वो सभी की प्यारी थी।ससुराल में भी वो सिर्फ पांच दिन ही लगाकर गई थी और इतने कम दिनों में ही उसने सबके दिल में घर कर लिया था। मायके तो वह महीने के लिए गई थी पर जब पांचवें दिन ही पति लेने पहुंच गए तो वहां सबको हैरानी हुई।
घर में सभी याद कर रहे हैं और मां ने लिवा लाने के लिए भेजा है,कहते हुते पवन थोड़ा सा सकुचा गया था। लक्ष्मी के भाई -बहन स्वभाव से सीधे-साधे जीजा की हंसी बनाने लगे और मां बाप मुस्करा दिये।
लक्ष्मी ने सुबह -सुबह स्नानादि से निवृत्त होकर रसोईघर में पदार्पण किया और अपने काम में जुट गई। सबसे पहले उसने मीठे से शुरूआत की।बेसन का हलवा,जो उसकी सास हर खुशी के अवसर पर बनाती थी और सभी को पसंद था।
रसोई घर में एक खिड़की थी जो गली की तरफ खुलती थी। खिड़की से ठंडी ठंडी हवा अन्दर आरही थी जिससे उसको गर्मी का अहसास कुछ कम हो गया।बाद वह सब्जियां बगैरह काटने लगी। उसकी ननद जब मदद के लिए आई तो उसने उससे रसोई की आवश्यक सामग्रियों के बारे में पूछकर ,आग्रह कर वापिस भेज दिया था।
तभी उसे गली में कुछ औरतों के बात करने की आवाज आने लगी। कुछ देर बाद आवाजें नजदीक आई और लक्ष्मी को ऐसा महशूस हुआ कि वे शायद उसके ससुराल के बारे में ही चर्चा कर रही हैं और खिड़की के पास ही खड़ी हो गई हैं।
उसने थोड़ा उठकर आंचल को खींच कर निगाह मारी।वे दो औरतें थीं जिनमें एक उसकी सास की उम्र की लगभग चालीस पैंतालीस की अधेड़ औरत दूसरी वृद्ध लगभग साठ वर्ष की रही होगी। उसके कानों ने अपनी मंजिल पर कदम रख दिए।
अधेड़ावस्था वाली कह रही थी-अरे आजकल भलाई का जमाना कहां है?बनैनी (छोटे शहर व गांव-देहात में बनैनी शब्द बनियास्त्री को कहते हैं) यहां ही देख लो।पवन की शादी में उसकी मां को ही नहीं शामिल किया और हर जगह बनैनी ही मालिक बनी घूम रही थी।बहू भी ऐसी आई जो अपनी सास से मिली भी न, दस-बारह दिन हो गये शादी को। सास बिचारी तो नौहरे(पशु बांधने का स्थान)के एक कमरे में बन्द पड़ी है।
लक्ष्मी को कुछ समझ नहीं आया कि बनैनी कौन और उसकी सास कौन?वो और भी ध्यान से सुनने लगी।
अब वृद्ध औरत बोल रही थी-बनैनी के तो भाग ही खुल गये।ऐसी सुन्दर-सुघढ़ बहू है पवन की और दहेज तो पूछो मत,घर भर गया बनैनी का।साक्षात लक्ष्मी है।
अरे उसका तो नाम भी लक्ष्मी है। अधेड़ औरत बोली। अभी दूसरी बार आई है और सुबह-सुबह रसोई में लग गई। दोनों की निगाहें अब रसोई की तरफ थीं।
पर सास को क्या सुख दिया? वृद्ध थोड़ा सहानूभूति पूर्ण स्वर में बोली।
अरे चाची!कैसी बातें करती हो?उसे तो बताया ही न होगा कि उसकी सगी सास तो कोई और है और बच्चे भी तो बनैनी के कहे में रहते हैं,मजाल है कोई उसकी बात टाल जायें-सगे हों या सौतेले।
तभी लक्ष्मी का ध्यान टूटा कढाई में तेल धूंआ छोड़ रहा था और उसका मन भी उन औरतों की बातों की धुंध से भर गया जो उसके लिए एक पहेली बनकर रह गई थीं।
औरतें तो बातें करते हुये चली गईं लेकिन लक्ष्मी की जिज्ञासा को बढा गई। उसने मन में बहुत से प्रश्न थे जिनके उत्तर उसे ढूंढने थे।
उसकी सास कौन है?
बनैनी कौन है?
उसके मायके वालों को भी ये जानकारी थी या नहीं ।उसे कुछ क्यों नहीं बताया गया?
इन प्रश्नों के भंवर में डूबती-उतरती लक्ष्मी ने खाना तैयार किया।
क्रमशः
प्रीति शर्मा"पूर्णिमा"
07/11/2021