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लक्ष्मी पवन की पत्नी बनकर घर में आई। नगीना दास और सीमा को उसन सास-ससुर के रूप में पाया लेकिन जब उसे पता लगा कि उसकी सास रूक्मिणी है और उसकी हालत शारीरिक मानसिक से बहुत खराब है।उसको घर में एक शख्स का दर्जा भी प्राप्त नहीं तो उसने अपनी सास को इंसाफ दिलाने के लिए कदम उठाया।अपने पति को समझाया और फिर दोनों ने किस प्रकार अपनी मां, सास को उनके अपने घर में उनका स्थान दिलवाया,
पढ़िए अंतिम भाग में-
आशा है पसंद आएगा कहानी का समापन है।
जैसा कि लक्ष्मी से सीमा ने कहा था बाकी सभी को भी यही कहकर रखा था कि रुक्मिणी की मानसिक हालत ठीक नहीं है। लक्ष्मी ने इसी बात को आधार बनाया और घर में कह दिया कि डाॅक्टर ने कहा है कि अब मेंटल हॉस्पिटल में ही रुक्मिणी का इलाज होगा। हम उन्हें वहां से अपने मायके के शहर के एक हॉस्पिटल में शिफ्ट कर रहे हैं और वहां पर उन्हें मिलने के लिए ज्यादा लोग नहीं जा सकते। मरीज से मिलने पर पाबंदी है क्योंकि इससे इलाज में बाधा पड़ती है।हास्पीटल के नियमानुसार एक ही व्यक्ति उन्हें मिल सकता है तो किसी को भी ज्यादा चिंता करने की आवश्यकता नहीं है। हम बीच-बीच में उसे देख आएंगे और मेरे मायके वाले भी वहां हैं वो भी देखभाल कर लेंगे।
नगीना और सीमा ने एक बार हिचकिचाहट दिखाई कि उसके मायके वाले पूछेंगे तो हम क्या जवाब देंगे ?
तब लक्ष्मी ने उन्हें तसल्ली देते हुए कहा कि वह सब संभाल लेगी।अपने ससुराल की बदनामी नहीं होने देगी।इस तरह रुकमणी हॉस्पिटल में रहने लगी। लगभग एक साल होने आया, इस बीच सिर्फ पवन- लक्ष्मी रूक्मिणी से मिलने जाते और कभी -कभी रात को भी वहां रुक जाते।
नगीना ,सीमा ने एक दो बार जब देखने जाने को बोला तो पवन व लक्ष्मी ने उनसे परेशान ना होने की बात कहकर टाल दिया ।दोनों पति-पत्नी ,सीमा -नगीना वैसे भी अपने मन में शर्मिंदा थे और रुक्मिणी का सामना नहीं कर सकते थे,पता नहीं सामना होने पर वह कैसा व्यवहार करे?
इसीलिए वह उनकी बात मान लेते थे।
लक्ष्मी और पवन अभी भी सीमा को वही सम्मान देते थे जैसा पहले। दिल ही दिल में वे ये भी जानते थे कि छोटी मां ज्यादा दोषी नहीं है।उन्हें मुसीबत में जो भी सहारा मिला,थाम लिया। सीमा जब घर में आई थी पवन सात-आठ साल का था और रूक्मिणी-नगीना के झगड़ों को देखता था, थोड़ा बहुत समझता भी था।शुरू में सीमा ने उसकी मां को भी मान दिया था पर मां पिता के इस धोखे को सहन नहीं कर पाई और सारा क्रोध बच्चों व सीमा पर निकालती थी।
गलती तो पिता की थी,सज़ा उन सबको मिली और उस समय सीमा चाहती तो बच्चों को भी दुःखी कर सकती थी।शायद पिताजी भी तब छोटी मां के प्रेम में ज्यादा दखल न देते।सीमा तो मन ही मन शर्मिंदा थी इसलिए उनसे कुछ ना कहती ।
वास्तविकता यह थी कि पवन लक्ष्मी ने एक कमरा लेकर रुक्मिणी को वहां शिफ्ट कर दिया था।साथ ही एक नर्स देखभाल के लिए रहती थी,जो घर के अन्य काम भी किया करती थी। रुक्मिणी को इलाज की इतनी जरूरत नहीं थी, जितनी कि किसी अपने के साथ की, शांति की ,प्यार की, और यह आवश्यकता लक्ष्मी और पवन दोनों मिलकर कर रहे थे। खानपान व उचित देखभाल,पवन -लक्ष्मी का साथ रुक्मणी के लिए वरदान बना।
शरीर धीरे-धीरे भर गया था।चेहरे से झुर्रियां गायब हो गई थीं मानो कभी थी ही नहीं।जीने की चाह पैदा हुई आशायें उम्मीदें बढने लगीं तो आंखों में चमक भर गयी ।जो कुछ उसके जीवन में हुआ ,उसे भाग्य मानकर आज वह स्वीकार कर चुकी थी और आगे के जीवन को परिवार के साथ रहकर खुशी और शान्ति- पूर्वक बिताना चाहती थी।
आज लक्ष्मी और पवन की शादी को एक साल हो रहा है।घर में सुबह से रौनक थी।नगीना और सीमा ने मिलकर उनके इस दिन को खास बनाने के लिए सोचा था।शायद वह इस तरह से उन को खुश करना चाहते थे कि उन्होंने उन्हें अभी भी वही मान सम्मान दिया ।उनके सामने कभी अपनी मां की हालत को लेकर या बात को छुपाने की जो भूल की थी, उसके लिए वह शायद एक पश्चाताप कर रहे थे या उनको उसका फल दे रहे थे।
चारों और सजावट हो रही थी ।शाम को खाने पीने का आयोजन था।बहुत से लोगों को निमंत्रण दिया गया था ।लक्ष्मी के मायके वाले भी आ रहे थे। लक्ष्मी पवन ने भी कुछ खास सोच रखा था।
रात्रि के लगभग 7:00 बजे लक्ष्मी तैयार होने के लिए ब्यूटी पार्लर पर जाने के लिए कहकर गई थी।मीना आई हुई थी और जब उसे पता लगा उसकी मां यहां नहीं है हॉस्पिटल में है तो उसे लगा शायद उसकी मां के दिन अब भाभी के आने से फिर जाएंगे ।
सभी लक्ष्मी के आने का इंतजार कर रहे थे तभी सबने देखा लक्ष्मी आ रही है पर अकेली नहीं साथ में एक सुंदर, प्रभावशाली व्यक्तित्व की महिला उसके साथ है। सभी देखने लगे मायके वाले तो पहले ही आ चुके थे। लक्ष्मी के साथ कौन है?
यह प्रश्न सभी के दिमाग में कौंध रहा था।जब वह दोनों नजदीक आए तो सबके साथ सीमा और नगीना देखते रह गए क्योंकि यह रुक्मिणी थी। दोनों के मुंह से एक साथ आश्चर्य में निकला।-
तुम .....रुक्मिणी ....जीजी.....
रुक्मिणी मुस्कुराई उसने सीमा के गाल थपथपाये।ये स्पर्श सीमा को अहसा़स करा गया कि रूक्मिणी ने उसे माफ कर दिया।वह झट से उसके चरणों में झुक गई ।
मुझे माफ करना जीजी।मैंने आपके साथ बहुत ही गलत किया...
रुक्मणी ने उसे उठाकर गले लगा लिया ।
तुमसे मुझे कोई गिला नहीं है क्योंकि तुमने मेरे बच्चों को कभी भी अपनी सौत के बच्चे नहीं माना और उन्हें मेरी तरह ही प्यार दुलार दे कर बड़ा किया है और सबसे बड़ी बात लक्ष्मी जैसी बहू लेकर आई हो जिसने मुझे दुबारा ये दिन दिखाया।तुम्हारी इसमें कोई ज्यादा गलती नहीं है तुम तो बच्ची ही थीं..
नगीना दास अपने किये पर शर्मिंदा थे।उन्होंने अपने दोनों हाथ रुकमणी के आगे जोड़ दिए ।
मैं बहुत शर्मिंदा हूं ,,.....मैंने तुम्हारे साथ बहुत गलत किया।मुझे माफ़ कर दो रूक्मिणी।माफी के काबिल तो नहीं पर फिर भी.....
रुक्मिणी ने कहा, - "जो हो गया भूल जाइए।आपने जो किया माफी के काबिल तो नहीं.... लेकिन बच्चों को इस घर में कभी भी किसी भी कमी को महसूस नहीं होने दिया और सीमा ने हमेशा उनका ध्यान रखा तो मैं आपको आपकी गलतियों के लिए माफ करती हूं।"
"मेरी बहू नाम की ही लक्ष्मी नहीं सचमुच में लक्ष्मी है और मैं भगवान से प्रार्थना करती हूं कि ऐसी सुंदर, सुशील समझदार बहू सबको मिले जो अपनी ही सास को उसका हक दिलाने के लिए खुद पहल करे और बिना किसी को नुकसान पहुंचाए,अपमानित किए,
घर समाज में सम्मान दिलाये ।"
रूक्मिणी ने लक्ष्मी को गले लगा लिया। मीना और सीमा भी दोनों तरफ से उसके गले लग गईं। नगीनादास ने भी पवन को गले लगाया।गगन व भुवन ने रुक्मिणी के चरण स्पर्श किये।चारों ओर खुशियां थी।सभी खुश थे।
रुक्मिणी को घर में आज वही सम्मान मिला जो उसका पहले था।सीमा ने उसको बड़ी बहन की तरह ही जैसे कि पहले जब वो आई थी उसी तरह से उसको मान दिया और रुक्मिणी ने, जो पहले नहीं किया था वह आज किया सीमा को मन से अपनी छोटी बहन स्वीकार करके।
समाप्त।
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"