आपने लक्ष्मी के पिछले भाग नहीं पढ़े तो पहिले उन्हें पढ़ें तभी कहानी का मूल भाव समझ आयेगा।
पिछले भागों में आपने पढ़ा कि नवविवाहिता लक्ष्मी को पता लगता है कि उसकी सास कोई और है और जिसे वह अपनी सास समझती थी वह पवन की दूसरी मां है।वह इस बारे में पवन से बात करती है।
अब आगे.....
"लक्ष्मी अभी तुम्हें घर का माहौल नहीं पता। छोटी मां इस घर की मालकिन हैं। उन्हें जो सही लगता है वही इस घर में होता है।हम उनके आगे नहीं बोल सकते... " लाचारी भरे स्वर में पवन बोला।
पर तुम स्वयं फैक्ट्री संभालते हो,क्या कभी घर में यह कहा कि तुम अपनी मां को साथ रखना चाहते हो।घर के बड़े बेटे को इतना अधिकार तो घर में होगा... "रोष व्यक्त करते हुए लक्ष्मी ने कहा।
नहीं,फैक्ट्री पापा के नाम है।यह घर भी सीमा मां का है। सीमा मां ने ही बचपन से हमारा ख्याल रखा है यहां तक कि हम तीनों भाई-बहनों को मां का प्यार भी दिया, हम उन्हें कैसे नाराज कर सकते हैं.. ?
पापा जी भी नाराज हो जाएंगे, फिर मम्मी भी तो पागलों के जैसे रहतीं हैं... पवन ने अपनी मजबूरी के साथ अपनी सोच भी लक्ष्मी के सामने रख दी।
लेकिन वो तुम्हारी सगी मां हैं पवन और उनकी इस हालत का जिम्मेवार कौन है,क्या तुम नहीं जानते.. ?लक्ष्मी ने पवन को हैरानी से देखते हुये कहा।
पर मेरे हाथ में क्या है,उनकी देखभाल के चक्कर में कहीं छोटी मां और पापा नाराज हो गये तो कहीं मेरा और उनका दोनों का अहित न हो जाए... ?
पवन ने अन्दर का डर पत्नी के सामने जाहिर कर दिया।
"ये अहित अब नहीं होगा पवन।",लक्ष्मी सोचते हुए बोली।
कैसे.....? पवन उसके मुख की ओर प्रश्नवाचक मुद्रा में देख रहा था।
मैं इस घर में बहु बनकर आई हूं। सब कुछ संभाल लुंगी और किसी को भी नाराज होने का अवसर नहीं दुंगी, साथ ही मम्मी भी ठीक हो जायेंगी।बस मुझे तुम्हारे साथ और सहायता की आवश्यकता है.. लक्ष्मी ने पवन को आश्वस्त करते हुए कहा।
लेकिन..... पवन ने कुछ बोलना चाहा।
लेकिन, किन्तु,परन्तु..... .ये सब छोड़ दो।बस एक बात ध्यान रखो कि हमें मां को फिर से परिवार में उनका स्थान दिलाना है और उसके लिए उनका पूर्णतः ठीक होना जरूरी है।
मैं तुम्हारा साथ देने को तैयार हूं। सब कुछ अगर पहले जैसा हो जाय तो सबसे ज्यादा खुश मैं होऊंगा और जीवन भर तुम्हारा अहसान मानूंगा।पर सब कुछ सोच-समझकर करना। कोई भी एक ग़लत कदम हमारी मुश्किलें बढ़ा सकता है... पवन कुछ उम्मीद और चेतावनी के से स्वर में बोला।
तुम चिन्ता मत करो और जो मैं कहती हूं ध्यान से सुनो। लक्ष्मी पवन के समीप आ गयी। धीमी आवाज में वह पवन को कुछ समझाने लगी।उसकी बातें पवन को हैरत में डाल रहीं थीं साथ ही उम्मीद भी जगा रही थीं। बीच-बीच में पवन सिर हिला देता और हां,ना कर देता।
"ठीक है न पवन"लक्ष्मी ने सब समझाने के बाद पवन से पूछा।
तुमने तो सच में कमाल कर दिया। मैंने तो कभी ऐसे सोचा ही नहीं और ना ही कभी हिम्मत हुई।तुम मेरे जीवन में खुशियों की बहार लेकर आई हो।पवन प्रसन्न होते हुये बोला।
सच....।
हां...।
तो कुछ इनाम ...।
क्या दूं...बताओ।मेरा सब कुछ तो तुम्हारा ही है।जो भी कहोगी और जो मेरे वश में होगा... खुशी से भरी आवाज़ में पवन ने लक्ष्मी का हाथ प्यार से थाम लिया।
बताओ ना..।
तुम्हारा प्यार और विश्वास..।
हुंह..।
रात आधी बीत चुकी थी। पति -पत्नी के बीच का प्रेम इस बीती आधी रात में प्रगाढ़ हो चुका था।
मन और आत्मा का मिलन ही सच्चे गृहस्थ जीवन की नींव है ,जिस पर आने वाली ज़िन्दगी टिकी होती है।
क्रमशः
प्रीति शर्मा" पूर्णिमा"