पिछले अंक में आपने पढ़ा ...
पूनम के ससुराल वालों का व्यवहार उसके साथ कुछ ज्यादा अच्छा नहीं था वह उसकी सुन्दरता को सभी के सामने शो पीस की तरह पेश करते और उसके मायके वालों से भी संबंध नहीं रखना चाहते थे।पैसे का अहंकार और इस तरह का दिखावा देख पूनम का दिल टूट गया लेकिन उसने मन ही मन संकल्प किया कि वह इन परिस्थितियों का सामना करेगी। पूनम नितिन के साथ अपने ससुराल रूपी पिंजरे में वापस तो आ गई। लेकिन उसने मन ही मन संकल्प किया कि वो इस पिंजरे को धीरे-धीरे अवश्य काट देगी और अपने ख्वाबों का महल बना स्वतंत्र उड़ान भरेगी। अब आगे....
पूनम ने धीरे-धीरे अपने सास-ससुर एवं पति की पसंद ना-पसंद जानना शुरू कर दिया। उसकी कोशिश होती कि वो सभी का दिल जीत ले और जितनी जल्दी हो सके, परिवार का रहन-सहन अपना ले और अपनी खुद की एक पहचान बना ले।
उसने कहीं पढ़ा था कि "अगर सुखी रहना है तो या तो किसी को अपना जैसा बना लो या फिर तुम उनके जैसे बन जाओ...."
और अब उसकी कोशिश थी कि अगर ससुराल वालों को बदलना है तो पहले खुद में बदलाव लाने होंगे तभी वो अपने ससुराल में बदलाव लाने के संकल्प में सफल हो पाएगी। कुछ ही दिनों में पूनम ने अपने ससुराल के सदस्यों का सारा इतिहास जान लिया था।
वास्तव में उसकी सास एक साधारण परिवार से थी और पैसे वाले घर में आकर मायके से रिश्ता तोड़ चुकी थीं या शायद परिस्थितियों वश टूट चुका था। ससुर के माता-पिता चार साल पहले एक एक्सीडेंट में गुजर गये थे तब से घर में सास का एकछत्र राज्य था। ससुर बहुत ही अनुशासन और रूआब वाले थे जबकि पति नितिन मां के आज्ञाकारी।
कोई भी सास कितनी भी आधुनिक क्यों ना हो पर अपनी बहू को संस्कारित देखना बेहद पसंद करती है। उसकी बहू उसकी हर बात माने, उसकी हर आज्ञा का पालन करें और पूनम ने यह बात गांठ मार ली कि अगर उसने अपना अस्तित्व बनाना और बचाना है तो सास और पति को ही जरिया बनाना पड़ेगा। सास को ही पहले साधना पड़ेगा और पति तो फिर स्वयं ही सध जायेंगे।
हालांकि घर में नौकर चाकर थे काम के लिए लेकिन पूनम को पता था कि किसी के दिल को जीतना हो तो सबसे पहले उसका पेट मनपसंद चीजों से भरो फिर उनकी पसंद नापसंद को जितना हो सके अपनाओ... चाहे ऊपर से अपनाओ पर उन्हें ऐसा लगना चाहिए कि वह उनकी तरह ही बन रही है। इससे उसके और उसके मायके पर कई जानेवाली टीका टिप्पणी कम हो जायेगी।
अब पूनम खुद रसोईघर में जाती और अपनी निगरानी में सबकी पसंद की स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर खाना बनवाती। उसे पता था कि उसकी सास को शुगर है और उन्हें सुबह के नाश्ते में दलिया, स्प्राउट्स अनाज और फ्रूट आदि दिये जाते हैं उसने उनके लिए प्रतिदिन का खाने का चार्ट बना लिया और रोज अलग-अलग चीजें सर्व करती। नितिन को खाने में आलू के परांठे के साथ दही चटनी और सांवर डोसा आदि बेहद पसंद थे। वह हर रोज अलग -अलग तरह के भरवां परांठे टेबिल पर सर्व कराती जबकि ससुर खाने के मामले में बहुत सावधानी रखती, कोलेस्ट्राल की शिकायत जो थी उन्हें।
उसके सास-ससुर हर तीसरे महीने अपना चैकअप कराते थे। इस बार दोनों की जो रिपोर्ट आई बहुत अच्छी थी।
पूनम के व्यवहार से सास-ससुर, पति सभी प्रसन्न थे और अब उस पर रोक-टोक कुछ कम हो चुकी थी। उन्हें लगने लगा था कि पूनम उनके रंग-ढंग अपना रही है और अपने गरीब घर से नाता तोड़ चुकी है क्योंकि उसने अब तक मायके के बारे में कोई बात नहीं की ना कोई सवाल पूछे। नौकर चाकर भी बहुरानी के स्वयं काम में सहायता और व्यवहार से प्रसन्न थे।
हालांकि सजने संवरने में पूनम की ज्यादा रुचि नहीं थी लेकिन इतना वह जानती थी कि शादी के बाद पति पत्नी को सजे संवरे रूप में देखना ज्यादा पसंद करते हैं ऊपर से उनका बड़े घर की बहु होने का दिखावा।
जब भी कोई मेहमान घर आता तो वह हद से ज्यादा टाइम साज सिंगार में लगाती। जब तक कि दो-तीन मैसेजेज बाहर से नहीं आ जाते कमरे से बाहर नहीं आती और फिर मेहमान के सामने विनम्र होकर कहती।
"माफ करना बड़े घर की बहु हूं ना तो थोड़ा उसी तरह से दिखना भी चाहिए। अब साधारण परिवार की लड़की थी तो.... यह सब कभी किया नहीं तो थोड़ा टाइम लग गया।"
सास और पति उसकी तरफ देखते लेकिन वह इग्नोर कर देती। ये वही वाक्य थे जो उसको पति और सास द्वारा जब-तब सुनाये गये थे। अब उन्होंने यह कहना बन्द कर दिया था क्योंकि वह उन्हें कोई मौका ही नहीं देती थी।
क्रमशः -
क्या ला पायेगी बदलाव पूनम ससुराल में....? जानने के लिए पढ़ते रहिये अगला भाग।
प्रीति शर्मा "पूर्णिमा"
23/10/2021