22/7/2022प्रिय डायरी, आज मैंने शब्द.इन में मन दर्पण शीर्षक पर कविता लिखी। मन एक दर्पण होता है हमारे
डायरी सखि, अब तो स्पष्ट रूप से परिलक्षित हो रहा है कि मेरा देश बदल रहा है । समाज के दलित, वंचित, आदिवासी, वनवासी लोगों को उचित मान सम्मान मिल रहा है और उन्हें मुख्य धारा में लाया जा रहा है । पहले
आज शाम को जैसे ही ऑफिस से घर निकल रही थी तो अचानक तेज बारिश शुरू हो गयी। जब काफी देर तक बारिश बंद नहीं हुई तो अँधेरा होता देख मैंने बरसाती पहनी और घर को को निकल पड़ी। तेज बारिश के कारण जगह-जगह सड़क पर
सफ़र जारी है....कंधों का सहारा दिया कीजिए,कई रातों की रतजगी है....जरा चैन से नींद में सोने तो दीजिए।।#प्राची ❤️🚆
सखि, ये क्या हो गया है सांसदों, राजनीतिक दलों को ? जब देखो तब संसद में हंगामा खड़ा कर संसद को स्थगित करवा देते हैं । ना तो कोई काम करते हैं और ना ही करने देते हैं । इनको लगता है कि यदि काम हुआ तो
हवा अपने से रह रह कर कहती है कभो मस्ती में तो कभी वेग से बहती है हवा ढूंढ रही है कम दबाव का क्षेत्र और मचल रही है तेजी से पहुंचने को कभी तूफान बन कर तो कभी बवंडर और छोड़
पाणी भरना, आये कितने झरुरुडे नहौण, नहाए कितने घरे प्रौणे, आये कितनेओखे बेले, निभाये कितने ब्याह कारज, बरताये कितने जीने दे हन दिन ही कितने कुसी दे कम्मे, आये कितनेखोदल पाई, खि
पूनम के चांद में संक्रांति का प्रभाव हैगौतम बुद्ध के निर्वाण में मानवता का भाव हैनीड़ों को लौटते पक्षियों में गजब का सम्भाव है तपते मौसम में जलते वन, शुद्ध हवा का अभाव है चमकते चांद की सफलता
कल आंधियों ने झकझोरा था मेरा शहर पुराने दरख्तों के गिरने से बिखरा सहमा घबराया था मेरा शहर जान माल के नुकसान से टूटा डरा रुलाया था मेरा शहरबिजली के टूटे खम्बों उलझी तारों सेअंध
बात आई जब सैर की वो उठे और दबे पांव निकल गए उनके कदमो में गजब की ठसक थीउनके पैरों में एक अलग सी कसक थी उनकी आहट में खामोशी थी उनकी चाल में भी मदहोशी थी वजन की नजाकत
डायरी सखि, कहने को तो सब कहते हैं कि देश में बेईमानी बहुत है । ईमानदारी कहीं नहीं है । पर क्या एकमात्र यही सत्य है सखि ? मेरा प्रश्न है कि किसे चाहिए ईमानदारी ? आजकल उत्तर प्रदेश में "महा भू
तेरे नैनादेख तेरे नैना नगमें और गीत लिखते हैंभटकते रहते हैं इश्क़ की राहों मेंचाहते हैं तुम्हें और इश्क़ बेपनाह लिखते हैं।जब खुशियां क़बूल तेरीतो तेरे गम से कहां डरते हैंमुहब्बत करने वाले दिलऐसी छोटी
डायरी सखि, हमारे पुरखे कह गये हैं कि जैसा कर्म करोगे वैसा फल भी भुगतोगे । मगर आधुनिकता की नकली चादर ओढ़कर लोगों ने पाप कर्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है । भगवान का अस्तित्व मानने से ही इंकार कर
डायरी दिनांक १९/०७/२०२२ रात के आठ बजकर दस मिनट हो रहे हैं । कभी कभी एक समस्या समाप्त नहीं होती, उससे पहले ही दूसरी समस्या आरंभ हो जाती है। अब गुर्दे की पथरी का दर्द बंद है तो दाड़ में दर
19/7/22प्रिय डायरी, आज मैंने शब्द.इन पे शब्दों की उड़ान शीर्षक पर कविता लिखी। शब्दों का सफर
सावन की खीर सावन की झमाझम बारिश लगी हुई है, मंडुये के खेत मे भगतू ने हल लगा दिया है, भगतू की पत्नी रज्जू ने घने मंडुये की पौध को एक तरफ निकाल दी है। शाम को दूसरे खेत मे मंडुये की पौध
सखि, कल मैंने बताया था कि किस तरह रूबैया सईद के अपहरण कर्ता यासीन मलिक को रूबैया ने कोर्ट में पहचान कर उसकी सजा मुकम्मल कर दी । आज ऐसे ही एक और षड्यंत्र के बारे में बताना चाहता हूं । सखि, यह
बरसात के दिनगर्मियों के बादमौसम ने थोड़ी सी अगड़ाई ले ली हैकभी तेज़ धूप तोकभी छांव सुंकूं की आती जाती है।नींदों के साथ छुपन - छुपाई लगी हैतेरी यादों की कसमबारिश के मौसम में भीतेरी यादों की झड़ियां आनी
डायरी सखि, आज बड़ा अच्छा लग रहा है कि पापियों के पाप अब सामने आ रहे हैं । एक कहावत है कि पाप का घड़ा कभी न कभी तो फूटता जरूर है । मगर इस "लोक" और "तंत्र" के कुचक्र में न्याय "अन्याय" का दंश झेलने
मैं जब प्रधानमंत्री बन जाऊंगामैं जब प्रधानमंत्री बन जाऊंगाले आऊंगा विदेशों से अपना पैसाकाली कमाई कोई भी रख नहीं पायेगासुधरेंगे देश के हालातखाते में सबके पंद्रह - पंद्रह लाख रुपए जायेंगेहर घर में नल -