तिरंगा हवा में सुंदर लहराए, मेरे दिल को खूब लुभाए। तिरंगे का लहराना ही शान है,इसके संग जुड़ना बड़ा सम्मान है।।हर घर लहराएं तिरंगा,घर घर फहराएं तिरंगा।आजादी का अमृत महोत्सव मनाएंगे,तीन रंगों
आसमान में ऊंचे से ऊंचा उड़ना,पर जमीन से नाता जोड़े रखना ।ये संकल्प तुम्हे निपुण बनाएगा, सफलता की ओर लेकर जाएगा।सफलता के लिए एकाग्रता चाहिए, अपनी एकाग्रता को समृद्ध बनाइए। सफलता का मंत्र
डायरी दिनांक ०७/०८/२०२२सुबह के नौ बजकर तीस मिनट हो रहे हैं । आज सुबह से ही तेज बारिश होने लगी। कुछ देर बहुत तेज बारिश हुई। फिर कुछ धीमी दर से भी बारिश होती रही। अभी बरसात बंद हुई है। मौसम में ठं
प्रिय सखी।कैसी हो।मै अच्छी हूं दो दिन से घर पर ही हूं । थोड़ी तबियत ठीक नही रहती पतिदेव की।पता नही कुछ डिप्रेशन की समस्या हो गयी है शायद।आज कल काम धंधा तो है नही खास अच्छे से अच्छा व्यक्ति भी इस बीमार
डायरी दिनांक ०६/०८/२०२२ शाम के छह बजकर तीस मिनट हो रहे हैं । कभी कभी भावनाओं में बहकर बहुत लंबा चोड़ा लिख जाता है। बाद में उसे मिटाना आवश्यक होने लगता है। आज वही स्थिति आ गयी। एक बड़ी डायरी लि
जय हिंद का सुन रहा हूँ उद्घोष,ह्रदय में भर जाता है जोश ।तिरंगे को मन में बसाता हूँ, जय हिंद का नारा लगाता हूँ।।इसको जब देखूं लहराता, दिल मेरा खुशी से भर जाता।सम्मान में शीश झुकाता हूँ,
महानगर के बीचों बीच आकाश छूती इमारतों के बीच त्यागी अपने पन्द्रहवें माले के फ्लैट की बालकोनी के बाहर खड़ा हैं। काम वाली बाई सुबह का खाना बनाकर रख गई है । पिछली रात बेटा और बहू भी मुन्नी को लेकर एक दूस
डायरी दिनांक ०५/०८/२०२२ शाम के सात बजकर पांच मिनट हो रहे हैं । कल शाम से मेरी तबीयत खराब होने लगी। जबकि मम्मी की तबीयत उससे भी एक दिन पहले से खराब थी। यह मौसम में बदलाव का असर है या कुछ और, हम
पिता से है जीवन.. जो जग में है लाया इस दुनिया से मेरा जिसने.. परिचय कराया पकड़कर उंगली मेरी..जिसने चलना सिखाया वो है पिता..जिसने हंसना सिखाया खिलौना जो बचपन का.. मुझे सबसे पहले भाया
मैं तिरंगा ले आया हूँ, तुम भी तिरंगा ले आना । मैं भी तिरंगा फहराऊंगा, तुम भी तिरंगा फहराना ।।लहराते तिरंगे की छटा न्यारी,इसी संग ऊंची शान हमारी । तिरंगा फहराएंगे मान से, तिरंग
जनाब क्या लिखूँ इस कोरे कागज पर ? जो लिखूँ ,सच लिखूँ या फरेब मगर इतना जरूर है मेरी कलम से जो लिखूँ सच लिखूँ जो पढ़े उसके भीतर में भी सच लिखूँ ओर यह सच क्या है हुजूर ! यह सच जो है हुजूर
प्रिय सखी।कैसी हो ।मै अच्छी ही हूं ।वही दैनिक कार्यक्रम चल रहा है घर से देहली शोप और शोप से घर।बस इसी भागदौड़ मे लिखने का समय ही नही मिलता।बस सफर मे कुछ ऐसा दिख जाता है जिसको देखकर बहुत बार मन लिखने क
प्रिय सखी।कैसी हो।मै बस अच्छी ही हूं। मनोभाव आहत थे पर थोड़ी मलहम पट्टी शब्द टीम की तरफ से अनजाने मे ही हमारे आहत मनोभावों पर हो गयी ।डायरी लेखन प्रतियोगिता में हमे प्रथम स्थान मिला तो वही पहली ही बार
प्रिय सखी।कैसी हो।मै अच्छी हूं। अभी देहली शोप से आकर बैठी हूं इतना टाइट शैडयूल्ड चल रहा है कि लेखन पर ध्यान ही नही दे पा रही हूं। मुझे लग रहा है कहीं मै लेखन से दूर ना हो जाऊं।जो मेरी जान है।पर
छोड़ गाँव की अल्हड़ मस्ती।खुद को समझता शहरी हस्ती।।सोच ब्रांडेड पर चीजें सस्तीं।बातें जन-जन की अब डसतीं।।छूट गया ये रक्षाबंधन।टूट गया सपना तरु चंदन।।अब लगता नहीं मन किसी मोह में।गुजरे यौवन उहापोह
सखि, कुछ सालों पूर्व एक फिल्म आई थी जिसमें एक गाना था "हाय हाय गर्मी, उफ्फ उफ्फ गर्मी" । पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है कि अब वह गाना कुछ लोगों द्वारा कुछ इस तरह से गाया जा रहा है ह
सफ़ल नियमप्रेम की बारिश सुदूर क्षेत्रों में पड़ती है तो झ्मम -झम की आवाज़ बड़ी सुहावनी लगती है लेकिन ज्यों -ज्यों बारिश पास आ नज़दीक में बरसने लगती है तो फुहारें तन मन को तो भींगों ही जाती है,साथ ही क
💧 मुझे पूरा सागर पीना है।💧 💧💦💧💦💧💦💧 मैं मुक्त गगन की उड़ती पंछी, कैद हो गई पिंजरे में। मैं तो उड़ना, बोलना भूल गई, जीवन के उलझे टुकड़ों में। मैं तो थी लहराती नदी, कलक
(1) कहां-कहां ना भटका मैं एक हसीन शाम की खा़तिर जैसे भटका था भरत कभी अपने राम की खातिर एक वो ना मिला मुझे अरे वाह री ऐ तक़दीर मेरी
तन्हाइयों ने हमे कुछ इस कदर प्यार किया है, कि साथ है वो मगर फिर भी दूरियां बहुत है।