अब तक आपने पढ़ा कि आलोक अपने घर से अंकल अमर से बचने के लिए भागता है लेकिन रास्ते में वह गिर जाता है तभी रसिया नाम का पोस्टमैन उसे संभालता है और अस्पताल में एडमिट करवाता है...अब वर्तमान दृश्य में आलोक
आओ आजादी का अमृत महोत्सव मनाएँ, घर-घर प्यारा तिरंगा लहराएं।तिरंगा हमारी शान है,तिरंगा हमारी जान है।।तिरंगा सुना रहा आजादी की कहानी, आजादी की खातिर शूूरवीरों ने दी कुर्बानी ।तिरंगा शान से ऊंच
सखि, न्याय की चाल कितनी धीमी है , यह आज मुझे प्रत्यक्ष अनुभव हुआ । मैं सन 2009 से 2012 की अवधि में जिला रसद अधिकारी , अजमेर के पद पर,पदस्थापित रहा था । इस अवधि में राजस्थान सरकार ने "शुद्ध के लिए
पिछले भाग में अपने जाना कि विवेक के पिता रामदास को कुछ गुंडों ने घायल करके जंगल में फेंक दिया था उसके बाद पोस्टमैन रसिया नाम का व्यक्ति उसे अपनी साइकिल छोड़कर किसी टैक्सी पर अस्पताल पहुंचाता है ।वह मन
आलोक को किसी कारणवश चोट लग गई थी । वह अब अस्पताल में बेड पर दीवार से सटकर बैठा हुआ है और उसके साथ डॉक्टर कमलकांत बातचीत करते हुए बोले , '' बेटे अब तुम ठीक हो गए हो लेकिन पूरी तरह से नहीं तुम्हें
प्रिय सखी।कैसी हो।मै ठीक हूं।आज तो ज्यादा ही खुश हूं ।आज से अटठारह साल पहले मुझे मातृत्व का पहली बार सुख मिला था।आज मेरे बड़े बेटे का जन्म दिन है।पता ही नही चला कब गोलू मोलू बेटा डैशिंग हंक बन गया।अब
समझो नाइशारों को तुम हमारे ऐ सनम अब समझो ना ।क्या बोलती है ये आंखे , इन आंखों की भाषा को तुम अब समझो ना ।दे रही है दस्तक मेरी धड़कने तेरे दिल को , उन धड़कनों के इशारों को अब समझो ना।इशारों को तुम
प्रेम पीड़ावो जो आंखों में ठहर जाती है पीड़ा बनकरवो जो कभी आंखों से बह जाती है मृगतृष्णा बनकरचाहा तो था उसे न कभी चाहूंपर इश्क़ उतार लाती है वोआज़ भी ख्वाबों,ख्यालों में आकरलिखता हूं मैं उन ज़ख्मों को
जीवन परिचय कलाकार छात्र छात्राओं द्वारा संचालित किया गया है मेरा नाम प्रियांशु प्रजापति (लकी) का जन्म सन, 2003 ई० में उत्तर प्रदेश के जिला गाजीपुर एक गांव रसूलपुर कंधवार (सरया) नमक ग्राम में हुआ मेरे
सखि, आज तो एक पहाड़ देखा है । अब ये मत कहना सखि कि इसमें खास बात क्या है ? पहाड़ तो रोज ही दिखते हैं । टूटते हुए , खिसकते हुए, दरकते हुए, सरकते हुए, सुबकते हुए और कलपते हुए । पहाड़ों की तो जिंदगी
when I ever had a fall,He is my pillar so strong & tall.He knows my dreams His words are supreme His passion is extreme Love my father as a cream When I cry&n
न्याय के मंदिर में अनुभव हुआ,आध्यात्मिकता का एहसास!!हां मैंने न्याय के मंदिर में पाए हैं !एक साथ कई एहसास !!एहसास वकील साहब की तर्कों में तर्कों के भावों में भावों की संवेदनाओं मे
आँखें अक्सर धोखा दे जाती हैं कभी मेरे झूठ से,तो कभी मेरे आंसुओं से, कभी मेरी बात से,तो कभी मेरी हंसी से ,फिर आंखे अक्सर आईना दिखा देती हैं झुक के नम होकर,अपने को परखने को तैयार, फि
बाहर बर्फानी हवाओं का फेरा है पहाड़ों पर घने बादलों का डेरा है दूर छत पर कबूतर भी ठिठुराया है धौलाधार सफेदी ओढ़े नज़र आया है लम्बी सर्द बारिश का दौर है रजाई में
खुशियों की चाभीइक चाभी बनवाकर खुशियों वाली,अपार संभावनाएं से भरी बरसात,खुशियों की मैं करना चाहती हूं,दीप जलाकर प्रेम अगन कीमन को मैं ज़िंदा रखना चाहती हूं।सैलाब उमड़ा जो गम का कभीइसी चाभी से कैद,गमों
इंसान की सबसे बड़ी संपत्ति उसका शरीर है और ये संपत्ति ऊपर वाले का अनमोल उपहार है जो उसकी मर्जी से ही हमें मिला है वो चाहे तो कभी भी एक झटके में ऐसी पटखनी लगा दे कि एक ही बार में व्यक्ति चारों खाने चित
इंसान की सबसे बड़ी संपत्ति उसका शरीर है और ये संपत्ति ऊपर वाले का अनमोल उपहार है जो उसकी मर्जी से ही हमें मिला है वो चाहे तो कभी भी एक झटके में ऐसी पटखनी लगा दे कि एक ही बार में व्यक्ति चारों खाने चित
प्रिय मन प्रेम....क्रमश: .......प्रेम......!!याद तो हमेशा रहती है कि मैं सिर्फ़ शरीर हूं और तुम शरीर में बसने वाले देवता।कितना भी सम्मोहन छोड़ने की कोशिश
ये जो मुस्कुराते चेहरे हैं न..... अपने अंदर के गम को हंसी में यूँ ही उड़ा देते हैं ये जो मुस्कुराते चेहरे हैं न अपने गम को किसी से कहते नहीं दूसरे के गम में ग़मगीन दुसरो की ख़ुशी को भी अपना बना लेते