सव्येष्ठ आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण
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आज के सदाचार संप्रेषण में आचार्य जी के मन में सांसारिकता के साथ सदाचार के संयोजन का भाव आया है इस समय पढ़े लिखे लोगों के मन में उथल पुथल है कि सरकार किसकी बनेगी गांव आदि में भी इसकी चर्चा चलती है अर्धशिक्षित लोग भीड़ का अंग बन जाते हैं जाग्रत सक्रिय क्रियाशील देश संघर्ष के साथ सदैव संयुक्त रहते हैं संघर्ष वैचारिक, व्यावहारिक, शारीरिक, सामाजिक या अध्यात्म की प्राप्ति का भी हो सकता है संघर्ष मनुष्य का स्वभाव है संघर्षण आग जलाने के लिए भी हो सकता है और आग बुझाने के लिए भी हो सकता है हम लोगों का संघर्ष जिनके साथ है वो हमारे धर्म के विरोधी हैं हमारा धर्म सन्मार्ग का प्रथम उपदेश और उन्नति का नियम है जिसमें कोई विकार नहीं है हमारा मार्ग सुस्पष्ट है और गन्तव्य है संसार की समस्याओं को सुलझाते हुए मोक्ष आचार्य जी ने संयम और संस्कार को स्पष्ट किया यतो अभ्युदय निःश्रेयससिद्धिः स धर्मः। (कणाद, वैशेषिकसूत्र, १.१.२) की व्याख्या करते हुए बताया कि ऐसा धर्म तमाम विघ्न बाधाओं से उलझते हुए अन्य से टक्कर लेने लगा अनलहक (एक अरबी पद जो अहं ब्रह्मास्मि का वाचक है और जिसका अर्थ है मैं ही ब्रह्म या ईश्वर हूँ।) के लिए " ईरान के मशहूर सूफ़ी संत मंसूर बिन अलहल्लाज को सूली पर चढ़ा दिया गया। आचार्य जी ने वह कथा बताई कि पत्थरों के विपरीत फूल मारने पर वह क्यों रोने लगा संसार का जानना और मानना दुरूह विषय है अध्यात्म यही है अपने अन्दर यही प्रवेश कर जाए तो आनन्द की सीमा नहीं विचार और विकार मिल नहीं सकते जो हमारे धर्म के विरोधी हैं उनसे सचेत रहें हमारा संगठन विनाश के लिए नहीं विकास के लिए है इसका ध्यान रखें और भारत मां की सेवा में रत रहें |