प्रस्तुत है सिंहदर्प आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण
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हम चाहे विद्यालय में रहें किसी संस्था में रहें अपने घर में रहें अपने कार्यक्षेत्र में रहें किसी अन्य जगह जायें विधि व्यवस्था का पालन करना हम मनुष्यों की अनिवार्य आवश्यकता है सामान्य जीवन से लेकर विशेष जीवन तक व्यक्ति परेशानियों में ही उलझा रहता है इसीलिये आध्यात्मिकता की आवश्यकता होती है अत्यन्त उल्लासमय भावमय वातावरण में कल 73 वां गणतन्त्र दिवस संपन्न हुआ l भाव उत्साह उल्लास आनन्द मन से संबन्धित हैं मन भावनाओं का स्रोत है बुद्धि विचार करती है तो फिर प्रश्न आते हैं यह क्यों मनाया जाता है इसकी क्या आवश्यकता है संघर्ष क्यों होते हैं इन प्रश्नों के कारण संसार उलझा हुआ दिखता है और इस उलझाव से व्याकुलता आती है इस व्याकुलता को व्यक्ति व्यक्ति से संपर्क कर दूर करता है भक्ति के आधार पर उलझाव दूर किया जा सकता है आचार्य जी ने एक बहुत रोचक बात बताई कि श्री माधव सदाशिव गोलवलकर जी फोटो क्यों नहीं खिंचाते थे आचार्य जी ने परामर्श दिया कि गीता के 18 वें अध्याय में 55 वें से 62 तक,चौथे अध्याय में 16 वें से 24 वें तक छन्द पढ़ें
भक्त्या मामभिजानाति यावान्यश्चास्मि तत्त्वतः। ततो मां तत्त्वतो ज्ञात्वा विशते तदनन्तरम्।।18.55।।
उस पराभक्ति से मुझे , मैं जितना हूँ और जो हूँ -- इसको तत्त्व से जान लेता है तथा मुझको तत्त्व से जानकर फिर तत्काल मुझमें प्रविष्ट हो जाता है। आचार्य जी ने कवि का वास्तविक अर्थ बताया गीता के अनुसार कवि की परिभाषा है कविं पुराणमनुशासितार मणोरणीयांसमनुस्मरेद्यः। सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूप मादित्यवर्णं तमसः परस्तात्।।8.9।। गीता जो सर्वज्ञ, पुराण, शासन करने वाला, सूक्ष्म-से-सूक्ष्म, सबका धारण-पोषण करने वाला, अज्ञान से अत्यन्त परे, सूर्य की तरह प्रकाशस्वरूप -- ऐसे अचिन्त्य स्वरूप का चिन्तन करता है। मनुस्मृति में 4/24 में भी कवि का अर्थ है सर्वज्ञ कवि का अर्थ बुद्धिमान्, चतुर, प्रतिभाशाली भी होता है गीता हो या मानस हो एक कथा के माध्यम से संसार की सारी व्यथाओं का सुलझाव एक मनुष्य के द्वारा ही कर दिया जाता है और मनुष्य अपनी उलझनें सुलझाते रहते हैं यदि किसी वस्तु व्यक्ति स्थान से हम आनन्दित हो जाते हैं (कभी दुःखी भी ) तो देखा जाये हम अपना ही दर्शन करते हैं यह परमात्मा के रहस्य हैं रहस्यात्मक संसार को जानने के लिये स्वाध्याय संयम साधना का भाव जाग्रत होना चाहिये आचार्य जी ने इसके अतिरिक्त भैया डा अमित गुप्त भैया अजय वाजपेयी भैया अजय द्विवेदी भैया समीर राय की माता जी की चर्चा की |