प्रस्तुत है स्मितदृश्आ चार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण https://sadachar.yugbharti.in/ , https://youtu.be/YzZRHAHbK1w , https://t.me/prav353
आचार्य जी आज कानपुर पहुंचेंगे भाषा का व्यवहार मनुष्य को ही प्राप्त है मनुष्य मनुष्यत्व आदि की चर्चा होती रही है नरोत्तम जैसे विशेषण की युति हमारे साथ हो जाये तो अच्छा लगता है दूसरी ओर नराधम विशेषण सुनने में खराब लगता है मनुष्य अपने पतनशील भाव को लगातार ऊपर उठाने की चेष्टा करता है आचार्य जी ने इसके बाद भीष्म पर्व की चर्चा की भीष्म पर्व के अन्तर्गत ४ उपपर्व हैं और इसमें कुल १२२ अध्याय हैं। इसी में बताया गया है पृथ्वी को सात द्वीपों (जम्बूद्वीप, प्लक्षद्वीप, शाल्मलद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप तथा पुष्करद्वीप) में बाँटा गया है, जिनके अलग अलग वर्ष, वर्ण, उपद्वीप, समुद्र तथा पूज्यदेव आदि होते हैं। पृथ्वी के केन्द्र में स्थित द्वीप को जम्बूद्वीप कहते हैं। 122 अध्यायों में 25 वां अध्याय गीता का है भारतवर्ष की नदियों पर्वतों जलाशयों वनस्पतियों आदि का बहुत विस्तार से वर्णन है इसीलिये महाभारत को पञ्चम वेद कहा जाता है लेकिन दुर्भाग्यवश यह प्रचलित हो गया कि महाभारत के सारे अध्याय एक साथ बैठकर पढ़ने सुनने नहीं चाहिये अन्यथा विनाश हो जाता है इस तरह की बातों से परिवारों में जब भ्रम और भय आ जाता है तो यह हमें ज्ञान की परम्परा से काट देता है ये सब शिक्षा के दोष हैं परतन्त्र में भी हम सदैव संघर्षरत रहे इसलिये हम ज्ञान की इन धरोहरों को बचा पाये इसी आधार को लेकर दीनदयाल विद्यालय प्रारम्भ हुआ पूजा पाठ करने के लिये प्रोत्साहित किया गया हम मानस गीता का पाठ करें आदि उस जीवनशैली के आधार पर हम दीनदयाल विद्यालय के विद्यार्थियों का विकास हुआ शरीर का मध्यम भाग (कटि से कण्ठ तक ) महत्त्वपूर्ण है उसी तरह किशोर वर्ग की शिक्षा अर्थात् माध्यमिक शिक्षा भी अति महत्त्वपूर्ण है अब अभिभावक रूप में हमें इस शिक्षा के प्रति बहुत सचेत रहने की आवश्यकता है दीनदयाल विद्यालय के हम विद्यार्थियों का विकास इस कारण हो पाया कि हमें नरोत्तम माता -पिता नरोत्तम आचार्यगण नरोत्तम बैरिस्टर साहब आदि का सहयोग मिला इन नरोत्तम व्यक्तियों ने जो कुछ दे सकते थे उसे देकर समाज को पीढ़ी को परिपुष्ट किया साधु संतों ने भी कई पाठशालाएं खोली हमारे साहित्य में बहुत कुछ है यद्यपि काफी नष्ट कर दिया गया है जिसे जानने की आवश्यकता है आचार्य जी इसी जिज्ञासा को जगाने के लिये लगातार प्रयासरत हैं हम अपने बच्चों को ये सब बतायें ज्ञान में वृद्धि करके हम संसार के मोहमंडल से मुक्ति के भाव को उभार सकते हैं ब्रह्मज्ञान अविनाशी है ब्रह्म सृष्टि और स्रष्टा दोनों है परमात्मा के पास बैठने का प्रयास करें यानि उपासना करें आचार्य जी ने शौर्यप्रमण्डित अध्यात्म की महत्ता पर जोर दिया ज्ञान की ओर हमारी उन्मुखता की कामना की कर्म के प्रति लगाव हो मनुष्यत्व का आनन्द प्राप्त करें |तत्व का संग्रह करें |