प्रस्तुत है स्नेहिन् आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण
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परमात्मतत्त्व बिना विचार के सहज ही कभी कभी उद्भूत हो जाता है परमात्मा काल, स्वभाव,कर्म आदि का नियन्त्रक है और सृष्टि रचते समय एक व्यवस्था देता है रुद्र के अवतार हनुमान जी जिनमें परमात्मा की विशेष शक्ति समाई हुई है हमारे कष्टों का निवारण करने वाले इष्ट देवता हैं देव तत्त्व परमात्मा और जीवात्मा के मध्य का एक ऐसा सेतु है जिसके सहारे हम संसार सागर को पार कर सकते हैं आचार्य जी ने शङ्कराचार्य के केवलाद्वैत, रामानुज के विशिष्टाद्वैत, मधवाचार्य के द्वैत और वल्लभाचार्य के शुद्धाद्वैत के बारे में विस्तार से बताया इसी तरह निम्बार्क का द्वैताद्वैत है देखा जाए हमें इन सबकी बात ठीक लगती है क्योंकि हम कच्ची मिट्टी हैं कोई हमें कुछ भी बना सकता है जिनके भीतर आत्मतत्त्व जाग्रत रहता है वह बनाने वाले के प्रति जागरूक भी रहता है इस संसार को समझने के लिये हमें आत्मचिन्तन आत्ममन्थन अध्ययन ध्यान धारणा का अभ्यास करना चाहिये इसी से स्वाध्याय की ओर उन्मुखता होगी | हमने लक्ष्य बनाया राष्ट्र- निष्ठा से परिपूर्ण माजोन्मुखी व्यक्तित्व का उत्कर्ष समाज के प्रति अपने कर्तव्य को समझें जिस प्रकार के कार्य व्यवहार की आवश्यकता हो उसी प्रकार का कार्य व्यवहार करना चाहिये यही समाजोन्मुखता है आनन्द प्रदान करने वाला है