प्रस्तुत है धैर्यकलित आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण
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स्थान -परिवर्तन और व्यवस्था -परिवर्तन में भी तपस्वी लोगों की दिनचर्या में परिवर्तन नहीं आता है दीनदयाल जी अशोक सिंघल जी गुरु जी इसके उदाहरण हैं गहरे व्यक्तियों को जानना उतना ही मुश्किल है जितना अपने को जानना सदाचार वेला का सार यही है कि हम अपने व्यक्तित्व को विकसित करने की दिशा में प्रयासरत रहें मनुष्य चिन्तनशील मननशील कर्मशील ध्यानशील विचारशील अभिव्यक्तिमय कैसे हो इसके लिये वो प्रयास करता रहता है सामान्य मनुष्यों की गणना तो होती है लेकिन हम लोग अपने व्यक्तित्व के विकास में उनका ध्यान नहीं रखते हैं लेकिन मतदान में इनका भी मत होता है और इसलिये हम विचारशील लोगों का कर्तव्य है कि आगामी लोकतन्त्र के पर्व को ध्यान में रखते हुए उनको हम प्रभावित प्रेरित करें | यह भी राष्ट्र- सेवा है समाज- सेवा है व्यक्ति यदि अपने शरीर की चिन्ता में ही लगा रहता है तो उसका चिन्तन पंगु हो जाता है हम परमात्मा का अंश हैं इसकी अनुभूति का प्रयास चिन्तन मनन करते रहें हम ऐसे देश के निवासी हैं जहां रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानन्द, शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, महाराणा प्रताप आदि हुए हैं ऐसे देश की सेवा में हम लगे रहना चाहते हैं यह अच्छी बात है सेवा के अलग अलग रूप हैं इसके अतिरिक्त श्री ज्ञानेन्द्र मिश्र जी भैया मलय जी भैया मनीष कृष्ण जी का नाम आचार्य जी ने क्यों लिया जानने के लिये सुनें |