आत्मानुसंधान तथा अन्तरावलोकन द्वारा अपने दोषों को दूर करने की चेष्टा करें -अखंड ज्योति अप्रैल 1951 पृष्ठ 8
प्रस्तुत है मार्गोपदिश् आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण
https://sadachar.yugbharti.in/ , https://youtu.be/YzZRHAHbK1w , https://t.me/prav353
इस समय शिशिर ऋतु चल रही है कोरोना से भारतवर्ष उबरने के लिए प्रयत्नशील है और हम लोगों का सौभाग्य है कि प्रातः काल सदाचार पाठ के लिये हम लोग जुड़े हुए हैं | आचार्य जी को लगभग 41 वर्ष का अध्यापन का अभ्यास है मैं कौन हूं मैं किसलिये आया हूं यदि हम आत्मस्थ होकर सोचें तो अन्दर से बहुत से भाव निकलते हैं दूसरे के प्रति श्रद्धा प्रेम विश्वास आस्था अनास्था द्वेष ईर्ष्या भारतवर्ष एक अत्यन्त सुरम्य वाटिका है और उत्तर प्रदेश में तो संपूर्ण भारतवर्ष का प्रतिनिधित्व किया गया है और गङ्गातटवासी तो और भी सौभाग्यशाली हैं बहुत से अभागे ऐसे भी हैं जिन्हें भारत की प्रकृति प्रभावित ही नहीं करती गङ्गा की अनुभूति ही नहीं होती अपनी भाषा के प्रति गर्व ही नहीं है आचार्य जी ने धर्माचार्य धर्मभीरु धर्मान्ध शब्दों के बारे में बताया धर्मान्धों के कारण ही अपने धर्म के प्रति हम लोगों की आस्था विकृत हो गईऔर धर्म को हम छोटे स्वरूप में ले आये धार्मिक लोग राजनीति से नौकरी से दूर रहें ऐसा भ्रम पैदा कर दिया गया और नास्थावादी होकर हम अपने बच्चों को उसी अनास्थावादी क्षेत्र में भौतिक भाव से विकसित करने लगे हम कमजोर हो गये खंड खंड हो गये पन्थ संप्रदाय आ गये हमें इसीलिये चिन्तनपूर्वक अध्ययन विचारपूर्वक व्यवहार और विश्वासपूर्वक आगे चलना चाहिये मनुष्यत्व की अनुभूति करके समस्याओं का समाधान मिल जायेगा और यह स्वयं से ही होगा प्रातःकाल का सूर्योदय के पूर्व जागरण अभ्यास में आना चाहिये जिसके लिये आचार्य जी ने कभी सिन्ध से आये नारायण दास जी बजाज की चर्चा की संसार से आवृत्त होकर आत्मबोध नहीं हो सकता गंगा भी तो जाजमऊ में संसारी हो जाती है अन्धत्व सबसे विशाल समस्या है अन्धत्व दूर करने के लिये गायत्री मन्त्र है यह मन्त्र विश्वामित्र ऋषि से उद्भूत हुआ विश्वामित्रत्व की अनुभूति कर हम लोग भी राम तैयार करें कर्तव्यबोध जाग्रत करें हमारा लक्ष्य है कि हमारे देश से यह दुर्भाग्य दूर हो कि हम ठीक बात सुन ही नहीं पाते किस समय कौन सा काम करना चाहिये जान नहीं पाते समय पर काम करना सीखें जाग्रत हों उत्साहित हों |