प्रस्तुत है तीव्रसंवेग आचार्य श्री ओम शंकर जी का सूरत जो उस समय मुगलों का एक अत्यधिक महत्त्वपूर्ण किला था उस पर सन् 1664 में आज ही के दिन शिवाजी राजे भोंसले (जन्म 19 फ़रवरी 1630) ने धावा बोल दिया था] का सदाचार संप्रेषण
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मनुष्य जब साधक के रूप में रहता है और सिद्ध अवस्था को प्राप्त नहीं होता है तो कोई काम कभी विलम्ब और कभी शीघ्रता से होता है इन व्यतिक्रमों के लिए व्याकुल नहीं होना चाहिए सम अवस्था में रहते हुए हम संसार को संसार की दृष्टि से देखकर आगे चलने का प्रयत्न करेंगे करम प्रधान विश्व रचि राखा। जो जस करइ सो तस फल चाखा।।" हम लोग अपने अध्ययन, स्वल्प ही सही, को समीक्षित परीक्षित करते हुए अपने व्यवहार में लाने का प्रयास करें आनन्द रहेगा विश्व कर्म प्रधान है और कर्म का संस्कार ही मानव की मूल शक्ति है इसी के अनुसार मनुष्य के भाग्य का निर्णय होता है कर्म भेद से किसी भी योनि में जा सकता है इसी के अनुसार लोक लोकान्तर में जाता है सत रज तम का विभाजन भी हमारे यहां हुआ है पिपीलिका वृत्ति, मार्जारी वृत्ति,मर्कटी वृत्ति आदि वृत्ति के लोग उस भाव को तो ग्रहण कर लेते हैं लेकिन उसे कर्म में पिरो देना बहुत बड़ी साधना का काम है प्रदर्शन से शक्तियां क्षीण होती हैं पैर न छुआना भी रहस्यात्मक है आत्मदर्शन के बाद कुछ प्रदर्शन कर सकते हैं अच्छी संगति पाकर अपने अन्दर का शठभाव सुधर सकता है | इस सदाचार वेला से उत्साह प्राप्त करें भीष्म पितामह के पश्चात्ताप को देखिये परमात्मा ने पिपीलिका वृत्ति यदि हमें दे दी तो अच्छे गुणों को हम ग्रहण कर सकते हैं कुछ कवियों ने ऋषित्व प्राप्त किया है भारत मां की सेवा ही क्यों इसके लिए आचार्य जी ने बहुत अच्छी बताई जिनमें भारत मां के प्रति ललक नहीं है वो अभागे हैं स्वार्थ में भारत मां का बहुत अहित हुआ है भारतीय भाव से आवेशित होकर अपने काम आगे बढ़ाएं |