प्रस्तुत है साशंस आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण : -
https://sadachar.yugbharti.in/ , https://youtu.be/YzZRHAHbK1w , https://t.me/prav353
इस सदाचार वेला का अनवरत संप्रेषण परमात्मा देवी देवताओं ऋषियों मनीषियों बुजुर्गों का कृपा प्रसाद है संसार में सब कुछ मिला जुला बना है कर्म विचार भाव का ऋषियों ने बहुत विस्तार किया है और हमें अपने पर विश्वास हमेशा रखना चाहिये निढाल होकर नहीं बैठना चाहिये संसार घटनाओं से भरा है अतः उनके प्रभाव से हम अछूते नहीं रह सकते उन प्रभावों की अभिव्यक्ति भी होती है उसमें कुछ लोग हमको अनुकूल मिलते हैं कुछ प्रतिकूल मिलते हैं उन्हीं के बीच हमें रहना है बीच में रहते हुए कुछ लोग हौसले से जीते हैं कुछ निराशा में रोज मरते रहते हैं हम लोग अपनेपन के भाव की पूजा करें पुत्र पुत्री भार्या मां पिता परिवार परिवेश पृथ्वी के प्रति अपनेपन का भाव होना ही चाहिये पृथ्वी शब्द अद्भुत है इसे हम निम्नांकित श्लोक में देख सकते हैं समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते ।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव ll
गीता में, ऋग्वेद में भी पृथ्वी का उल्लेख है यह सब ऋषियों की खोज है भीष्मपर्व के नवें अध्याय में पृथु से लेकर दिलीप तक का वर्णन तीन चार छन्दों में है इतना पुराना इतिहास क्या मात्र पांच हजार वर्ष पुराना है हमें इस तरह के भ्रमों से बचना चाहिये पृथु राजा वेन के पुत्र थे। भूमण्डल पर सर्वप्रथम सर्वांगीण रूप से राजशासन स्थापित करने के कारण उन्हें पृथ्वी का प्रथम राजा माना गया है। साधुशीलवान् अंग के दुष्ट पुत्र वेन को तंग आकर ऋषियों ने हुंकार-ध्वनि से मार डाला था। तब अराजकता के निवारण हेतु निःसन्तान मरे वेन की भुजाओं का मन्थन किया गया जिससे स्त्री-पुरुष का एक जोड़ा प्रकट हुआ। पुरुष का नाम 'पृथु' रखा गया तथा स्त्री का नाम 'अर्चि'। वे दोनों पति-पत्नी हुए। उन्हें भगवान् विष्णु तथा लक्ष्मी का अंशावतार माना गया है।महाराज पृथु ने ही पृथ्वी को समतल किया जिससे वह उपज के योग्य हो पायी। महाराज पृथु से पहले इस पृथ्वी पर पुर-ग्रामादि का विभाजन नहीं था l चतुर्युगी के पश्चात् भी कालगणना है अध्ययन स्वाध्याय विचार चिन्तन मनन सत्संगति करने से हम अपनी धारा निकालने में सक्षम होंगे उसी लीक पर नहीं चलेंगे कि हमारी संस्कृति मात्र पांच हजार वर्ष पुरानी है पथान्तरित व्यक्ति को आप अपने प्रभाव से अपनी शक्ति से सहायता के द्वारा विश्वास में लेकर विश्वास दिला सकते हैं कि सही मार्ग क्या है मुस्लिमों को लगना चाहिये कि हिन्दू हमारे हितैषी हैं हिन्दू मुस्लिम समस्या द्वेष संघर्ष ईर्ष्या से हल नहीं होगी शक्ति बुद्धि विवेक से भाव का विस्तार करें अपने भ्रमित लोगों के सहयोगी बनें भारत मां की सेवा में उद्यत होने के लिये आत्मसमीक्षा करें |