प्रस्तुत है आर्थिक आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण
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कल उन्नाव स्थित विद्यालय के पूर्व छात्र सम्मेलन में कानपुर से भैया दीपक शर्मा जी, भैया अभिनय मिश्र, भैया गणेश जी ओमर, भैया महेंद्र सिंह सेंगर (सभी सिंगापुर ), भैया वीरेन्द्र त्रिपाठी, भैया मोहन कृष्ण और लखनऊ से भैया अरविन्द तिवारी जी पहुंचे कार्यक्रम अच्छा रहा इसी तरह राष्ट्रोन्मुखी सिद्धान्त,आचरण , कर्म,व्यवहार का विस्तार होना चाहिये l देशभक्ति सांसारिक कर्मों का एक उदात्त कर्म है त्यागमय जीवन अपने विचार और व्यवहार का उदात्त उदाहरण है | दुनिया अपने लिये जीती है हम अपनों के लिये जीते हैं |
काम्यानां कर्मणां न्यासं संन्यासं कवयो विदुः। सर्वकर्मफलत्यागं प्राहुस्त्यागं विचक्षणाः।।18.2।।
कुछ विद्वानों के अनुसार काम्य कर्मों का त्याग संन्यास है जब कि कुछ के अनुसार सभी कर्मों के फलों के त्याग को त्याग कहते हैं हम में से अधिकांश परिवार के मुखिया हैं हम इस भूमिका में शोभायमान रहें इस ओर ध्यान रखें परस्पर का भाव राष्ट्र की निधि है क्योंकि भारत माता संपूर्ण विश्व का सदैव कल्याण करना चाहती रही है इसलिये हमारे अन्दर उसकी सेवा करने का भाव होना चाहिये यहां तो भगवान अवतार लेते हैं राम और कृष्ण की छवियों का वर्णन करते समय कवियों का विचारकों का भाव उनसे संयुत हो गया है अध्यात्म में अवतार उद्धार का सिद्धान्त यही है कि हम अनन्त शक्तियों को लेकर अवतरित होते हैं और फिर विस्मृत हो जाते हैं हम उन शक्तियों को भूल जाते हैं हम समझ नहीं पाते कि हम कौन हैं आचार्य जी ने प्रेत भाव से घूमने वालों की चर्चा की प्रातःकाल का जागरण, ध्यान धारणा भजन पूजन आत्मस्थता के आधार हैं परिवार से लगाव करें आचार्य जी ने सहजसमाधि का अर्थ बताया शिक्षार्थी को शिक्षक का समझाया हुआ समझने में कठिन इसलिये लगता है क्योंकि शिक्षार्थी उस भावभूमि पर नहीं उतरा होता है 23 जनवरी के कार्यक्रम की तैयारी हम लोग करना प्रारम्भ कर दें हनुमान जी हमारे इष्ट हैं वो हमारा अनिष्ट नहीं कर सकते हैं यह भाव हमेशा रखें भारत माता की सेवा में रत हों |