लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः। छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः।।5.25।।
प्रस्तुत है प्रबर्ह आचार्य श्री ओम शंकर जी का भारतीय संस्कृति की रक्षा और विस्तार हेतु सदाचार संप्रेषण
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आज मकर संक्रान्ति है आज के दिन ही सूर्यदेव का बारह राशियों में दसवीं राशि मकर राशि में प्रवेश होता है l धर्म और कर्म पर विवेकपूर्वक हमें विश्वास करना चाहिये l कर्मकांडों का ज्ञानार्जन आवश्यक है यद्यपि जब कर्मकाण्ड भयानक रूप ले लेते हैं तो उनकी शुद्धि के लिये अवतार आ जाते हैं जैसे बुद्धत्व के विकारी होने पर शंकराचार्य आये कुम्भ के आयोजनों में कभी न निकलने वाले ऋषि ज्ञानी तपस्वी भी आते थे दर्शन देते थे विचार प्रकट करते थे आचार्य जी ने स्वामी ईश्वरानन्द तीर्थ जी की चर्चा की जिनके दर्शन रामलला विद्यालय के प्रधानाचार्य पं काली शंकर अवस्थी जी ने किये हैं |
निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः ।
द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत् ।।15.5।।
को उद्धृत करते हुए आचार्य जी ने बताया कि मान अपमान सम्मान सुख दुःख आदि भाव विचार अद्भुत हैं एक उदाहरण :कल्याण सिंह का पुनः पुनः भाजपा में शामिल होना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने त्याग सेवा समर्पण शौर्य संघर्ष विजय के भाव को आत्मसात् करते हुए नर्मदा नदी की तरह विस्तार लिया | उद्गम के बाद विस्तार होगा तो विकार भी आयेंगे लेकिन विकारों के बाद भी संघ में कुछ ऐसे कार्यकर्ता हैं जिन्होंने सिद्धान्त नहीं त्यागे हैं वो भारत मां की सेवा में लगे है | देखा जाये तो जिस दिन से हमारा जन्म होता है उसी दिन से आयु क्षीण होने लगती है लेकिन हम आनन्दमार्गी हैं हम थार्थमार्गियों के विपरीत संघर्ष से उत्साहित होते हैं | इसीलिये हमारे साहित्य में सिनेमा में अन्त में अधिकतर नन्दपक्ष दिखया जाता है विवेकानन्द द्वारा शरीर त्यागने की घटना बताते हुए आचार्य जी ने कहा भारत में आशामयी संस्कृति का विस्तार हुआ यह हमारी संपदा है आनन्द के पक्ष का अनुभव करने के लिये हम प्रयासरत हों कल उन्नाव में एक कार्यक्रम है आप सब उसमें आमन्त्रित हैं इसी तरह 23 जनवरी के लिये भी योजना बनायें |