प्रस्तुत है अध्यात्मोद्रेचक आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण
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यदि श्रोता को अंतर्मन में बोलने का अभ्यास हो जाए और वक्ता को सुनने का अभ्यास हो जाए तो वक्ता और श्रोता की ये आध्यात्मिक अवस्थाएं होती हैं मनुष्य के जीवन में यह अद्भुत लीला है कि हमारे द्वारा भीतर भीतर बोलते हुए संगुंफन मन्थन होते हुए हमारे अन्दर से निकलता वही है जो हमारी प्रज्ञा विवेक बुद्धि से सुलझकर उपयुक्त होता है जीवन में ऐसी अनेक कलाएं हैं जिनकी अनुभूति अत्यधिक आनन्द देती है | गीता के अध्याय १३ - क्षेत्र क्षेत्रज्ञ विभाग योग में इसका वर्णन है तिलक जी द्वारा जेल में लिखी मूल गीता रहस्य पुस्तक हमें पढ़नी चाहिये गीता कर्म का बहुत बड़ा उदाहरण है |
निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।
द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।15.5।।
क्यों क्यों के उत्तर सहज रूप से अपने भीतर मिलते जाते हैं
या निशा सर्वभूतानां तस्यां जागर्ति संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः।।2.69।।
जब तक नींद है यह स्वप्न - सा संसार सच लगता है
अयोध्या कांड (लक्ष्मणगीता ) से मोह निसा सब सोवनिहारा । देखहिं स्वप्न अनेक प्रकारा ।।...
देश में गद्दार पनप रहे हैं प्रधानमन्त्री की सुरक्षा खतरे में है देश की क्या दशा है तो इन लीलाओं में अपना भाव बदल जाता है यदि हम शौर्य प्रमण्डित अध्यात्म को ध्यान में रखते हैं तो हमें लीला में यशस्विता प्रदर्शित करते हुए लक्ष्मण की तरह भाषा और भाव के साथ उस भूमि पर उतरना चाहिये स्वधर्म का पालन हमारा कर्तव्य है हमारी जो भूमिका है उसे ठीक से करना चाहिये लीला के पुरस्कृत पात्र तब ही बनेंगे जब देश काल परिस्थिति के अनुसार अपने धर्म को निभाएंगे कायर की तरह नहीं बैठना है पुरुषार्थ दिखाना है धन्य विवेकानंद तुम, धन्य तुम्हारा त्याग । धन्य मातु भुवनेश्वरी , धन्य दत्तकुल -भाग ।।(भाग्य) (✍️ओम शंकर 12/01/2022) हमें अपना कर्म पहचानना है आचार्य जी ने कहा कि स्वामी विवेकानन्द के कार्य और व्यवहार से हमें प्रेरणा लेनी चाहिये आगामी चुनाव को ध्यान में रखते हूए अपनी भूमिका देखें सदाचार को सुनें ही नहीं सदाचार में लगें इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने भैया सतीश जी भैया अमित गुप्त जी की चर्चा क्यों की जानने के लिये सुनें |