शौर्य कभी गर सो जाए तो हल्दीघाटी को पढ़ लेना ।।
प्रस्तुत है यजि आचार्य श्री ओम शंकर जी का सदाचार संप्रेषण
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शरीर के अन्दर का भाव / प्राणिक ऊर्जा /चिन्तन तत्त्व अद्भुत और अद्वितीय है और यह प्राणिक विस्तार केवल मनुष्य को मिला है अन्य जीव जन्तुओं को नहीं मनुष्य को मिली इस अनमोल थाती को जो जितना पहचान गया ज्ञान उसका उतना ही खुल गया वेद, पुराण,ब्राह्मण ग्रन्थ, उपनिषद्, दर्शन, गीता, मानस आदि इस राष्ट्र की निधि हैं और इनके आधार पर जो शिल्प निर्माण हुआ है अद्भुत है काम क्रोध लोभ मोह मद मत्सर ये षड्रिपु हैं लेकिन भारत भूमि का चिन्तन कितना उच्चकोटि का है कि काम भक्ति का मूल आधार है क्रोध से उत्पन्न तत्त्व शौर्य पराक्रम है लोभ से दान उत्पन्न है लोभ से दान कैसे उत्पन्न होता है इसके लिये रघुवंश में एक कथा है जब ऋषि कौत्स द्वारा 14 विद्याएं सिखाने पर ऋषि कौत्स को 14 कोटि सोने के सिक्के गुरुदक्षिणा के रूप में देने के लिये रघु ने कुबेर पर आक्रमण करना चाहा मोह परम त्याग है बुद्ध इसका उदाहरण है मद आत्मबोध है मत्सर स्पर्धात्मक चिन्तन कराता है हमें परमात्मा का बार बार स्मरण करना चाहिये कि हमें मानव शरीर दिया भारतवर्ष में उत्पन्न किया वैसे तो सब अपने लगते हैं लेकिन विवेक का संस्पर्श करने पर जब लगता है कि ये अपने क्यों नहीं हैं इनमें ये दोष हैं तो उन दोषों का परिष्करण आवश्यक है भाव विचार क्रिया से सशक्त होकर हम किसी को भी किसी दिशा में मोड़ सकते हैं | राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का जन्म भी इसी भाव से हुआ लगता है | लेकिन किसी भी संसारी काम में विकार तो आते ही हैं लेकिन हम नित्य प्रातःकाल के जागरण के बाद संकल्प करें कि विकारों को दूर करेंगे और सद्गुणों को ग्रहण करेंगे भाव विचार क्रिया को सम पर लाने के लिये हमें खानपान की ओर ध्यान देना होगा मनुष्यत्व की अनुभूति करें आत्म की अनुभूति आवश्यक है इसका विस्तार संसार का कल्याण है |