प्रस्तुत है सोत्कण्ठ श्रोताओं के समक्ष आज का सौमेधिक आचार्य श्री ओम शंकर त्रिपाठी जी द्वारा शंसित नभोवीथी से प्राप्त निःस्वातीत उद्बोधन आचार्य जी ने आज अनुभूत भावों का सहारा लेकर सदाचार संप्रेषण किया l शरीरं व्याधिमन्दिरम् l यदि वात पित्त कफ समस्थिति में रहते रहते हैं तो मनुष्य का शरीर चलता रहता है l छोटा बच्चा धीरे धीरे बड़ा होते होते शरीर को त्यागकर मुक्तस्वरूप में चला जाता है l और यदि हम इस बात से दुःखी हो जायें कि वो मुक्त स्वरूप में क्यों चला गया तो यही अविद्या है l कठोपनिषद् में यमराज नचिकेता संवाद की झलक देते हुए आचार्य जी ने कहा कि यमराज सृष्टि के नियमन का अंग है परिवर्तनशीलता इस संसार का रहस्य नहीं आवश्यकता है l कल्याण मार्ग का पथिक भोगों पर दृष्टि नहीं डालता l
आचार्य जी ने श्री ब्रह्मावर्त सनातन धर्म महामण्डल के उपाध्यक्ष रहे श्री गौरी शंकर भार्गव जी की चर्चा भी की l सभी सुखी हों सभी रोगमुक्त रहें ऐसी प्रार्थना करें l रागानुरक्त इत्वर को अतिपथानुसरण हेतु प्रेरित करना, राष्ट्र -रक्षा के लिए शौर्याबद्धाध्यात्म को अकुण्ठ महत्त्व देना,लेखन -योग की महत्ता को संशयातीत करना जिनके कुछ लक्ष्य हैं ऐसे परमज्ञानी प्राधानिक आचार्य श्री ओम शङ्कर त्रिपाठी जी का चर -मार्ग से प्राप्त |