आज प्रतिविशिष्टाभाषण इन संप्रेषणों के माध्यम से आचार्य जी का भाव यह रहता है कि हम अनुसंधान या परिस्थिति के अनुसार ज्ञान की दिशा में अग्रसर हो जाएं हमारा मानव जीवन मल,विक्षेप और आवरण से घिरा रहता है मल निष्काम कर्म से दूर रहने वाला संस्कारजनित दोष है l निष्काम कर्म से संस्कारजनित दोष दूर हो जाते हैं l चित्त का चाञ्चल्य विक्षेप उपासना से दूर होता है उपासना का मूल आधार एकान्त है l स्वरूप की विस्मृति सबको रहती है और यह आवरण ज्ञान से दूर होता है मनुष्य को ज्ञान का आभास परमात्मा ने दिया है यदि मनुष्य को मनुष्यत्व की अनुभूति हो जाए तो एक से एक काम हो जाएं l आनन्द की प्राप्ति हम लोगों का लक्ष्य है |
प्रसंग : श्री वचनेश जी और छात्रावास के अधीक्षक रहे द्विवेदी जी से संबन्धित प्रसंग |
परामर्श : मानस, गीता, उपनिषदों का अध्ययन करें |