अब के सदाचार -सम्मेलन से हम प्रश्नोपनिषद् में प्रवेश करने जा रहे हैं | ब्रह्मर्षियों के पुत्र सुकेशा, सत्यकाम, सौर्यायणी, आश्वलायन, भार्गव और कबन्धी अपनी जिज्ञासा शान्त करने के लिए पिप्पलाद ऋषि के पास जाते हैं | ॐ सुकेशा च
भारद्वाजः शैब्यश्च सत्यकामः सौर्यायणी च गार्ग्यः कौसल्यश्चाश्वलायनो भार्गवो वैदर्भिः कबन्धी कात्यायनस्ते हैते ब्रह्मपरा ब्रह्मनिष्ठाः परं ब्रह्मान्वेषमाणाः एष ह वै तत्सर्वं वक्ष्यतीति ते ह समित्पाणयो भगवन्तं पिप्पलादमुपसन्नाः ॥ ||१|| यद्यपि आप लोग तप करके आये हैं अच्छे परिवारों से हैं लेकिन एक वर्ष यहां भी ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करें तप करें | तान् ह स
ऋषिरुवाच भूय एव तपसा ब्रह्मचर्येण श्रद्धया संवत्सरं संवत्स्यथ यथाकामं प्रश्नान् पृच्छत यदि विज्ञास्यामः सर्वं ह वो वक्षाम इति ॥ इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने कहा मनुष्य की रचनाएं पूर्ण नहीं होती हैं परमात्मा की रचना पूर्ण होती है इसीलिए हम भारतीय अपनी रचनाओं के आधार को भी परमात्माश्रित करते हैंl आचार्य जी ने अंगुष्ठ को सबसे महत्त्वपूर्ण बताते हुए| कराग्रे वसते लक्ष्मी: करमध्ये सरस्वती । कर मूले तु गोविन्द: प्रभाते करदर्शनम् ॥१॥ की व्याख्या भी की|