भारत का अध्यात्म केवल चिन्तन का अध्यात्म नहीं है अपितु चिन्तनपूर्वक कर्म का अध्यात्म है और इसका व्यावहारिक स्वरूप श्रीमद्भगवद्गीता में देखना चाहिए l अध्यात्म और व्यवहार का तालमेल आवश्यक है l स्रष्टा और द्रष्टा दोनों बन जाना रहस्यात्मक भाव है l आचार्य जी ने विद्यालय में अध्यापन के समय का संघ के प्रचारक रहे श्री श्याम गुप्त जी से संबन्धित एक प्रसंग बताया जिसमें ॐ की महत्ता बताई गई थी l ॐ के उच्चारण से तन्त्रिका तन्त्र रक्त संचार व्यवस्थित होता हैl गायत्री मन्त्र से रोगी को लाभ होता है l अन्तर्जगत का पैसारा ही बहिर्जगत है l नचिकेता का वह गम्भीर प्रश्न क्या था और उसे क्या उत्तर मिला,अध्यात्म पूजा पाठ का विषय रह गया तो उससे क्या हुआ आदि जानने के लिए आज का उद्बोधन अवश्य सुनें अतिद्वय शिक्षक सोम्य दीक्षक अतुलनीय आशुकवि विलक्षण लेखक सत्यधृति विद्योपक्षेपक आचार्य श्री ओमशंकर त्रिपाठी जी का कहना है कि आप्तवचनाकर्णन ही पर्याप्त नहीं है अपितु आश्रुति के पश्चात् समाज को मार्गदर्शन देना, समय पर सेवा साधना विचार व्यवहार करना शौर्य ज्ञान प्रेम आत्मीयता प्रदर्शित करना आदि भी हमारे कर्तव्य हैं l तो और न देर करते हुए ज्ञीप्सा हेतु उद्ग्रीव श्रोता -कृत्स के समक्ष प्रस्तुत है |