पुनश्च प्रस्तुत है नैभृत्य की मूर्ति पण्डावत्आ चार्य श्री ओम शङ्कर जी द्वारा भाषित पवन -पदवी से प्राप्त का लगभग सत्रह मिनट तक अजस्र ज्ञान -पावनी प्रवाहित करता परलाप जो करता है परमात्मा करता है और वह सब अच्छा ही करता है यदि यह भाव विचार में परिवर्तित हो जाए तो मनुष्य का जीवन धन्य हो जाता है l आचार्य जी ने कठोपनिषद् (द्वितीय अध्याय तृतीय वल्ली) से यदा पञ्चावतिष्ठन्ते ज्ञानानि मनसा सह। बुद्धिश्च न विचेष्टते तामाहुः परमां गतिम्॥ तां योगमिति मन्यन्ते स्थिरामिन्द्रियधारणाम्। अप्रमत्तस्तदा भवति योगो हि प्रभवाप्ययौ ll अङ्गुष्ठमात्रः पुरुषोऽन्तरात्मा सदा जनानां हृदये संनिविष्टः। तं स्वाच्छरीरात्प्रवृहेन्मुञ्जादिवेषीकां धैर्येण ll तं विद्याच्छुक्रममृतं तं विद्याच्छुक्रममृतमिति l l
की व्याख्या की इस समय संघर्ष है सहयोग स्वार्थाधारित है निष्ठाएं बिकाऊ हैं| देशभक्ति व्यापार के रूप में है तो ऐसे समय में समाज की सेवा हेतु युगभारती का संगठन विस्तार हो रहा है यह अच्छी बात है | कुछ समय के लिए भावस्थ होने की चेष्टा करें | यदि हमारी भाव -भूमि उर्वर हो जाती है तो हम संसार में रहते हुए भी संसार से तरने का उपाय स्वयं खोज लेते हैं धर्म के दस लक्षण आदि सूत्र सिद्धान्त वाणी में तो आ जाते हैं लेकिन व्यवहार में नहीं और यदि वाणी और व्यवहार का सामंजस्य हो जाए तो हम सदाचार के अभ्यासी हो जाते हैं| मनुष्यत्व की अनुभूति हो जाती हैतो हम बहुतों का सहारा
बनेंगे और ये बहुत सारे लोग हमारा सहारा बन जायेंगे और संसार की समस्याओं का बोझ हम सब मिलकर हटा ही लेंगे | आज का TAKE HOME MESSAGE हम लोग मनुष्यत्व का वरण करें आजकल हम लोग देख ही रहे हैं कि भावितबुद्धि आचार्य श्री ओम शंकर जी द्वारा सन्यस्त प्रवचन ऐसी ज्ञानामरापगा प्रवाहित कर रहे हैं कि हम मनुष्यत्व को वरण करने के लिए संकल्पित श्रोता श्रवण -पथ से क्षणांश के लिए भी दूर नहीं हो पा रहे हैं आचार्य जी कहते हैं | सत्संगति स्वाध्याय-सुख, सेवा मय सत्कर्म । सहज शान्ति विश्रांत मन, ब्रह्म प्राप्ति का मर्म ।। आचार्य जी यह भी कहते हैं भगीरथ -प्रयत्न न सही
प्रतिदिन राष्ट्रहित के लिए हमारा वृक्षशायिका -प्रयास ही पर्याप्त है l