कुलतन्तु प्रज्ञावत् आचार्य श्री ओम शंकर त्रिपाठी जी 11/08/2021 से श्रोतावृन्द जिनका औत्सुक्य देखते ही बनता है को यावदर्थ औपनिषद ज्ञान से अभिसिञ्चित कर रहे हैं उसी क्रम में प्रस्तुत है आज दिनाङ्क 09/09/2021 का संप्रेषण तत्त्वज्ञान अत्यन्त कठिन विषय है l भारत यज्ञ को अत्यधिक महत्त्व देता है यजुर्वेद में यज्ञ के विस्तार से विधि विधान वर्णित हैं l कठोपनिषद् में नचिकेता पात्र के अन्दर जिज्ञासा,सुस्पष्टता, संयम, जाग्रत विवेक और संकल्पशक्ति है मनुष्य इनको अर्जित कर सकता है मनुष्यत्व साधन और साधना के भेद को समझता है यज्ञ साधन और साधना दोनों है कठोपनिषद् के प्रथम अध्याय प्रथम वल्ली के क्रमशः 14 वें और 15 वें छन्द
प्र ते ब्रवीमि तदु मे निबोध स्वर्ग्यमग्निं नचिकेतः प्रजानन्।
अनन्तलोकाप्तिमथो प्रतिष्ठां विद्धि त्वमेतं निहितं गुहायाम् ॥
लोकादिमग्निं तमुवाच तस्मै या इष्टका यावतीर्वा यथा वा।
स चापि तत्प्रत्यवदद्यथोक्तमथास्य मृत्युः पुनरेवाह तुष्टः ॥
का उल्लेख करते हुए आचार्य जी ने नचिकेता द्वारा मांगे गये तीन वरदानों के बारे में बताया l डा उमेश्वर पाण्डेय जी के हेवाकानुरूप विदितात्मन्आ चार्य श्री ओम शंकर जी द्वारा प्रक्रान्त औपनिषद ज्ञान हम श्रोताओं को निश्चित् रूप से लाभान्वित कर रहा है इसी ज्ञानाभिध्यान की पूर्ति के लिए प्रस्तुत है |