प्रस्तुत है आचार्यचूडामणि इराधिश्री श्री ओम शंकर जी द्वारा अभिगीर्ण का नभोवीथी से प्रहित अभिधान-
प्रसंग : विद्यालय के कार्यालय प्रमुख श्री रमेश चन्द्र अवस्थी से संबंधित एक प्रसंग (02:17-04:17) 7/8पूर्व छात्रों और आनन्द आचार्य जी के साथ देश -दर्शन (05:18-) बैरिस्टर साहब जी के अनुसार देश-दर्शन अत्यंत महत्त्वपूर्ण (07:00-) देश-दर्शन के माध्यम से अपनी मातृभूमि धर्मभूमि कर्मभूमि और तपोभूमि भारत के प्रति लगाव उत्पन्न करेंगे | यह विद्यालय का उद्देश्य रहा है| आचार्य जी ने कठोपनिषद् के उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत। क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति ॥ और अशब्दमस्पर्शमरूपमव्ययं
तथाऽरसं नित्यमगन्धवच्च यत्। अनाद्यनन्तं महतः परं ध्रुवं निचाय्य तन्मृत्युमुखात् प्रमुच्यते ॥
1/3/14 व 15 की व्याख्या की सद्संगति सदाचार स्वाध्याय और संयम मिलकर साधना होती है जो साधना में रुचि रखता है वो साधक कहलाता है और साधक भ्रमित नहीं होता है अपने भीतर के शुद्ध चैतन्य को जाग्रत करने का प्रयास हो विपत्ति में धैर्य रखें वर्तमान का आनन्द लें गौरवित आचार्य श्री ओम शंकर जी द्वारा प्रोक्त परिशाश्वत उद्बोधनों का निशामन हम मङ्गलेच्छु समूह के लिए अत्यन्त सौभाग्य का विषय है l प्रस्तुत है एक और आध्यात्मिक ज्ञान से शुभंभावुक आज |