तो पुनः एक बार का अनङ्गाध्वा से प्राप्त भाषित सुनने के लिए हम कटिबद्ध हो जाएं ज्ञान, भक्ति, वैराग्य, चिन्तन, विचार, संयम और निष्ठा का एकत्रीकरण हो जाए तो सब कुछ मिलता है और जिसमें सबसे वृहद् तत्त्व है ज्ञान आचार्य जी ने अङ्गुष्ठमात्रः पुरुषोऽन्तरात्मा सदा जनानां हृदये संनिविष्टः। तं स्वाच्छरीरात्प्रवृहेन्मुञ्जादिवेषीकां धैर्येण। तं विद्याच्छुक्रममृतं तं विद्याच्छुक्रममृतमिति l l
की पुनः व्याख्या की भक्ति में शक्ति भाव विचार सब कुछ है यदि भक्ति की अनुभूति और अभ्यास हो जाए | दीनदयाल जी सच्चे देशभक्त थे भारत देश स्वयं में भगवान बनकर उनके भीतर प्रवेश कर गया था | परमात्मा की शक्ति अद्भुत है पूर्वजन्म में किये गये सत्कर्म के अनुसार मनुष्य को उतना ही मिलता है न कम न अधिक अपावन को पावन बनाने वाला परमात्मा ही है परमात्मा की अनुभूति लगातार होती रहे यह उपदेश परमेश्वर द्वारा प्रेरित ज्ञानी ऋषि धर्मराज ने सामान्य शिष्य
नचिकेता को दिया है और यह आर्ष परंपरा हमारे देश की थाती है और यह आर्ष परंपरा हमारे बच्चों के पाठ्यक्रम में जीवनचर्या में विचारों में प्रवेश कर जाए इसका मार्ग हमें खोजना होगा | जयशंकर प्रसाद कामायनी, ऊषा सुनहले तीर बरसती, जयलक्ष्मी-सी उदित हुई। उधर पराजित काल रात्रि भी जल में अतंर्निहित हुई। वह विवर्ण मुख त्रस्त प्रकृति का, आज लगा हँसने फिर से। वर्षा बीती, हुआ सृष्टि में, शरद-विकास नये सिर से स्थितप्रज्ञ शुद्धात्मन् आचार्य श्री ओम शंकर जी द्वारा विवक्षित समुद्गारों के माध्यम से अभी तक हम अक्षरमुखों ने ईशावास्योपनिषद् (ईशावास्य =ईश +आवास्य ईश्वर से व्याप्त ) और कठोपनिषद् (कठ =क +ठ "क" अर्थात् ब्रह्म में "ठ " निष्ठा उत्पन्न करने वाला ) में चञ्चु -प्रवेश किया |