का सौश्रवसानुरूपोद्बोधन ॐ का उच्चारण नहीं ॐ की अनुभूति होना मूल बात है लेकिन यह कठिन भी है मनुष्य के द्वारा ही कलियुग में सतयुग की परिकल्पना की जा सकती है जहां शिक्षार्थी और शिक्षक का सुस्पष्ट दृष्टिकोण होता है वहां भ्रम नहीं होता है | आचार्य जी ने कठोपनिषद् की तृतीय वल्ली का संस्पर्श किया आत्मदर्शन के बिना संसार को समझना अत्यन्त कठिन है | भारत की चार वर्णों चार आश्रमों की उत्कृष्ट सुन्दर व्यवस्था अन्यत्र नहीं है भारत की संस्कृति संयम विचार विश्वास शौर्य श्रद्धा पराक्रम सब सुरक्षित हैं भारत पराभूत होने के लिए नहीं है l इसमें कोई भ्रम नहीं होना चाहिए कि राष्ट्रधर्म सर्वोपरि है l आर्यमिश्र प्राज्ञ आचार्य श्री ओम शंकर त्रिपाठीजी द्वारा वास्तवा में उद्भूत औपनिषदिक आध्यात्मिक ज्ञान से परिपूर्ण विषयवैविध्यार्णव में निमज्जित कर्णसुखद ब्राह्मी का श्रवण परिव्रज्योन्मुख मायाच्छादित श्रोतानिसार की दिनचर्या में प्रविष्ट हो गया है l