पथुप्रथ आचार्य श्री ओम शंकर जी द्वारा विवक्षित विभु-तीर्थ से प्रणीत सदाचार -संप्रेषण अवगाहनोत्सुक श्रोताओं हेतु समय के सदुपयोग का विलक्षण उदाहरण हैl प्रस्तुत है- आचार्य जी की अपेक्षा है हम लोग इसका विश्लेषण करते हुए अग्रसर हों प्रश्नोपनिषद् में प्रश्न हैं कि सृष्टि कैसे बनती है क्यों बनती है मनुष्य और परमात्मा का क्या संबन्ध है| इनके उत्तर उन्हें चाहिए जो मनन चिन्तन संयमन और आत्मस्थ होने का प्रयत्न करते हैं आचार्य जी ने आदित्यो ह वै प्राणो रयिरेव चन्द्रमाः रयिर्वा एतत् सर्वं यन्मूर्तं चामूर्तं च तस्मान्मूर्तिरेव रयिः ॥ की व्याख्या की आचार्य जी ने ॐ और गायत्री मन्त्र की महत्ता भी बताई | महाभारत और गीता का संस्पर्श भी किया कार्यक्रम, जैसा अभी 26/09/2021 को होने जा रहा है,का उद्देश्य यह होना चाहिए कि हम देखें कि इसे करने के बाद हमारे आध्यात्मिक प्रकाश में और सांसारिक विकास में कितनी वृद्धि हुई प्रदर्शन संसार को दिखाने के लिए होता है अपनी अनुभूति के लिए नहीं नित्य गृहस्थ को आदेश है कि वह पूजा उपासना ध्यान धारणा करे हमने भारतवर्ष में जन्म लिया है और इस बात पर हमें अभिमान करना चाहिए धतूरे के प्रयोग से आचार्य जी का क्या आशय है यह जानने के लिए सुनें अब तो भूयोविद्य आचार्य श्री ओमशङ्कर जी द्वारा आम्नात सदाचार संप्रेषणों को सुनने के लिए श्रोताओं में अहंप्रथमिका का भाव जाग्रत हो गया है l राष्ट्र -हित के लिए, समाज -हित के लिए और व्यक्तित्व के उत्कर्ष के लिए हम लोगों का दायित्व है कि इन संप्रेषणों को सुनने के लिए अन्य लोगों को भी प्रेरित करें l निःसंदेह संप्रेषणावतति अत्यावश्यक है l तो और न देर करते हुए प्रस्तुत है |