कल श्री रामजन्मभूमि आन्दोलन के शिल्पी श्रद्धेय श्री अशोक सिंघल जी के अवतरण दिवस के अवसर पर आचार्य जी ने अपने भाव निम्नांकित पंक्तियों से व्यक्त किए "जय श्रीराम" शौर्य-स्वर देकर जिसने देश जगाया था , जिस स्वर ने हिंदुत्व धार को खरतर कर चमकाया था , जिसने भाव भक्ति को विक्रम का उद्बोध कराया था, जिसने दंभी राजतंत्र को घुटनों बल बैठाया था , उस अमरत्व भाव को मेरा अगणित बार प्रणाम नमन , उसकी स्मृति अब भी हमको कर देती है दृप्त प्रमन।। जिसका स्वर संगीत सदा ही शौर्य शक्ति से झंकृत था , जिस स्वर का आलाप दिव्य भावों से सहज अलंकृत था, जिसकी वाणी में तपव्रत की आग वीरता भरी रही, जिससे देशद्रोह वाली संताने हरदम डरी रही , उस विजय व्रत वाली वाणी को मेरा सर्वदा नमन, उसकी स्मृति से ही अब भी खिल उठता मुरझता चमन।। थे अशोक पर शोक एक था "जन्मभूमि थल" बोझिल है , राजनीति के चक्रव्यूह में दिशा दृष्टि से ओझल है , तुम भरकर हुंकार बढ़े ढह गया तमाशा सदियों का, भ्रम मिट गया गुलामी लादे मिथ्या "सेकुलर वदियों" का , हे हिंदू की शान मान सम्मान तुम्हें शत बार नमन , प्रलय काल तक हिंदुदेश उल्लसित रहेगा मुदित मगन ।। जय जय श्री राम इसके अतिरिक्त आचार्य जी ने मुण्डकोपनिषद् की भूमिका बांधते हुए कस्मिन् नु भगवो विज्ञाते सर्वमिदं विज्ञातं भवतीति ॥ का अर्थ बताया आचार्य जी मोटरसाइकिल में किसके पीछे बैठते थे,घुन के जीवन से क्या तात्पर्य है आदि जानने के लिए सुनें |