प्रस्तुत है पुनश्च नमस्य करुणार्द्र आचार्य श्री ओम शंकर जी द्वारा प्रलपित अध्यात्माकीर्णोद्बोधन जो सकर्ण-वर्ग का अध्यात्म के रहस्यों के प्रति आनन्दि शान्त करेगा, जितनी देर भावस्थ हो सकें उतना अच्छा है | आचार्य जी ने आज ही यह पंक्तियां लिखी कि शब्द ब्रह्म भाषा सुधा वाणी है विस्तार सबके सामंजस्य को कहते धर्मविचार यह सदाचार वेला आत्मानुभूति का संप्रेषण है सत्य धर्म नीति न्याय कहीं न कहीं बीज रूप में सुरक्षित रहते हैं बीज कभी मरता नहीं यमराज नचिकेता को क्या समझाते हैं, स्वामी विवेकानन्द ने कौन सा सूत्र सिद्धान्त लिया जय शंकर प्रसाद रचित कामायनी के किस प्रसंग की आचार्य जी ने चर्चा की आदि जानने के लिए आज का उद्बोधन अवश्य सुनें |