साहित्यकारों के लेखकीय अवदानों को काव्य हिंदी हैं हम श्रृंखला के तहत पाठकों तक पहुंचाने का प्रयास कर रहा है। हिंदी हैं हम शब्द श्रृंखला में आज का शब्द है- मुदित, जिसका अर्थ है प्रसन्न होना, खुशी। प्रस्तुत है मैथिलीशरण गुप्त के काव्य सैरंध्री (द्रौपदी
लिखना भी एकcatharsis है। विभिन्न लोग इसे विभिन्न तरह से हासिल करते हैं। मुझे लिखकर ही प्राप्त हुआ। ज़मीन को फोड़कर, सर उठकर बीज की तरह निकला हूँ और जाड़ा, गर्मी, बरसात, आंधी सहकर वृक्ष बना हूँ। गांव से शहर तक, नगर से महानगर तक, पैदल से साइकिल तक, फिर मो
आज माघ महीने की पूर्णिमा है। शास्त्रों में इस दिन को बड़ा ही उत्तम कहा गया है इसी उत्तम दिन को 1398 ई. में धर्म की नगरी काशी में संत रविदास जी का जन्म हुआ था। रविदास जी को रैदास जी के नाम से भी जाना जाता है। इनके माता-पिता चर्मकार थे। इन्होंने अपनी
‘पहली वर्षगाँठ’ कविता की ये पंक्तियाँ तत्कालीन सत्ता के प्रति जिस क्षोभ को व्यक्त करती हैं, उससे साफ पता चलता है कि एक कवि अपने जन, समाज से कितना जुड़ा हुआ है और वह अपनी रचनात्मक कसौटी पर किसी भी समझौते के लिए तैयार नहीं। यह आजादी जो गुलामों की नस्ल
2050 मैं उत्पन्न समस्याएं, सुविधाएं, धरती का वातावरण। भाईचारे में आई दूरीयो का वर्णन करेंगी यह किताब । इसमें हास्य के साथ-साथ कुछ प्रेरणा भी मिलेगी।
(भूमिका) सबसे पहले तो मैं अपने पाठकों को 👉 इस पुस्तक में लिखी गई है आपकी बॉडी पासवर्ड क्या है आप इसके बारे में जरूर जानेंगे मुझे आशा है कि आपकी यह अनोखी जानकारी होगी, यह मेरे बचपन से अनुभव की गई बातें हैं जो आर्टिकल्स के द्वारा तथा कुछ विज्ञा
गुप्त जी कवि की यह भी अधिमान्यता है कि उसकी मातृभूमि की धूल परम पवित्र है। यह धूल शोकदार में दहते हुए प्राणी को दुःख सहने की क्षमता देती है। पाखण्डी-ढोंगी व्यक्ति भी इस धूली को तन-माथे लगाकर साधु-सज्जन बन जाता है। इस मिट्टी में वह शक्ति है जो क्रूर ह
मुलायम सिंग बहुत ही कडक स्वभाव के पोलिस अधिकारी थे। उनके पुत्र संजय सिंग व पुत्री नेहा सिंग उनसे बेहद डराते थे। संजय क्रिकेट का बेहतरीन खिलाड़ी था पर उनके पिता उन्हें क्रिकेट खेलने से मना करते थे वहीं पुत्री नेहा सिंग नृत्य सीखने पूना जाना चाहती थी
इस कविता का सारांश यह है कि , एक पुष्प जिसका प्राकृतिक इस्तेमाल , सुन्दर स्त्रियों पर सुशोभित होना , प्रेमिकाओं के गले की माला बनना , भगवानों की मूर्तियों पर चढ़ाया जाना और सम्राटों के शव पर डाला जाना है। वह पुष्प इस सब को छोड़ कर अपने आप को देश पर ब
*😢😢6 दिसम्बर 1956 राजधानी दिल्ली, रात के 12 बजे थे।* 🌗🌗 *☎️रात का सन्नाटा और अचानक दिल्ली, मुम्बई, नागपुर मे चारों ओर फोन की घण्टियाँ बज रही थी।* *🤫राजभवन मौन था,* *🤫संसद मौन थी,* *🤫राष्ट्रपति भवन मौन था।* *👨🦰👩🦰हर कोई कशमकश मे था।* *🔥शायद कोई
इस पुस्तक के भीतर आलोचना को निमित्त मानकतर गद्य में स्वतन्त्र कविताएँ रची हैं। इस पुस्तक के भीतर आलोचना नहीं, स्वतन्त्र काव्य का रस है। यह पण्डित का तर्क नहीं, कवि की वाणी का प्रसाद है। जिस प्रकार माखनलालजी की कविता और वार्ताएँ रसपूर्ण, किन्तु धुँधली
एक वैभवशाली राजा जिसके एक ही पुत्र था। आने राज्य में अपने न्याय के लिए मशहूर राजा प्रजा के लिए बहुत ही अच्छा था। राजा का पुत्र सुभद्र देव बचपन से परकर्मी और मेधावी था। लेकिन एक राजकुमारी कें प्रेम में फंसकर वो एक प्रतियोगिता हार जाता है और इस हार से
शीत काल में ठंड ना लागे, सम्मर में साँप से डर ना लागे, खाने को दाने ना, पुलिस थाने ना, भर्ती होना आसान नहीं, जवानों का दर्द कोई जाने ना । दौर - दौर के छाले पयरों में, हित-नात की बातें दिलों में, होठों से होठ दबोच आँशु नयनों में, शौक है किसका डूब जान
Life is a beautiful journey that is meant to be embraced to the fullest every day. However, that doesn’t mean you always wake up ready to seize the day, and sometimes need a reminder that life is a great gift......
कामायनी की कथा मूलत: एक कल्पना‚ एक फैण्टसी है। जिसमें प्रसाद जी ने अपने समय के सामाजिक परिवेश‚ जीवन मूल्यों‚ सामयिकता का विश्लेषित सम्मिश्रण कर इसे एक अमर ग्रन्थ बना दिया। यही कारण है कि इसके पात्र - मनु‚ श्रद्धा और इड़ा - मानव‚ प्रेम व बुद्धि के प्र
एक कविता जो चलती है। खाती है ठोकर भी गिरती है.. फिर उठती है। एक नई नजर लेकर अपना सबकुछ खोकर उस खोने मे सबकुछ पा कर। वो चलती रहती है.. उस आदिम अनंत 'राह' पर। पर वो कभी रुकती नहीं.. एक चलती हुई कविता, चलती रहती है...
मेरी खुशी ओस की दो बूंदें जैसे,,,, वैसी ही है वो परियां, मखमली सी बातें गुणों में की है वो ख़ान, उसकी मुस्कराहट हर थकान मिटा देती, बातें उसकी नया ख्याब दिखा देती, सही रास्ते पर वो चलना सिखाती, भुल जाऊं तोनई राह दिखाती, भटका जब भी राहों से,,,याद उ